काम की खबर : विकर्षक पौधे नाकाम करेंगे मैनी का हमला… फ़ल, फूल, सब्जी और अनाज उत्पादक किसानों के लिए खुशखबरी…

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सतीश अग्रवाल

बिलासपुर- रस चूसक घातक कीट मैनी से परेशान किसानों के लिए राहत की खबर। मसाला फसलों की कुछ प्रजातियां इस कीट से छुटकारा दिलाने में सक्षम पाई गई हैं, तो नीम का तेल भी मदद करेगा।

रस चूसक कीट याने मैनी के दिन आ गए हैं। खरीफ फसलों में भी इनकी मौजूदगी दिखाई देने लगी है। अनुपात में कीटनाशक दवाओं की मांग भी निकल पड़ी है। इस बीच कृषि वैज्ञानिकों ने इस घातक कीट का ऐसा प्राकृतिक समाधान खोज निकाला है जिसके उपयोग से तैयार होने वाली फसलों की गुणवत्ता बरकरार रहेगी और मैनी से भी छुटकारा मिल सकेगा।

क्या है मैनी

मैनी। इतना सूक्ष्म कि यह नजर नहीं आता। सफेद, काला, भूरा, पीला, हल्का हरा या गुलाबी रंग का होता है। नर्म शरीर वाला यह कीट, रस चूसक के नाम से भी जाना जाता है। कई हजार प्रजातियों में से गोभी, आलू, तरबूज और बींस में मिलने वाली मैनी को सर्वाधिक घातक और पौधों की मौतों के लिए जिम्मेदार माना गया है। यह प्रजातियां फल, फूल, सब्जी के अलावा अनाज की फसलों को भी व्यापक नुकसान पहुंचाती हैं।


प्रकोप के लक्षण

पत्तियों में भूरा या कालापन। पत्तियों के आकार में आनुपातिक कमी पहला संकेत है कि मैनी ने ठिकाना बना लिया है। छिपने के लिए पत्तियों का निचला हिस्सा और तना उत्तम जगह। यदि तना या पत्तियों को छूने पर चिकना द्रव्य के होने जैसा आभास हो रहा है, तो यह प्रकोप का दूसरा संकेत है। ऐसी ही स्थिति शाखाओं में भी महसूस की जा सकती है। नियंत्रण के उपाय फौरन करने होंगे।

यह मजबूत रक्षक

अनुसंधान में मैंनी या रस चूसक कीट पर प्रभावी नियंत्रण के लिए हल्दी, प्याज, लहसुन, अदरक, अजवाइन, टमाटर और सूरजमुखी को बेहद मजबूत रक्षक माना गया है। इनके पौधे और पत्तियों की मदद से फैलाव के प्रथम चरण में ही रोक लगाई जा सकेगी। इसके अलावा गेंदा के पौधों को भी कारगर पाया गया है।

नीम तेल और साबुन का घोल

मैनी पर प्रभावी नियंत्रण के लिए नीम तेल जहां जैविक उपाय होगा, वहीं साबुन के घोल का छिड़काव घरेलू समाधान माना जा रहा है। दोनों ही समाधान न केवल कारगर हैं बल्कि फसलों को सुरक्षित बनाए रखती हैं तो उत्पादन और गुणवत्ता भी बरकरार रखती है।

 

मैनी छोटे आकार के कीट हैं। जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों के सर्वाधिक विनाशकारी शत्रु हैं। हजारों की संख्या में उत्पन्न होकर यह कीट पौधों को छेद कर और उनका रस चूसकर उन्हें बहुत ही हानि पहुंचाते हैं।
– डॉ.(श्रीमती) अर्चना केरकेट्टा, सहायक प्राध्यापक( कीट विज्ञान), टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर