काले हीरे की धरती से निकलने वाले कोहिनूर को चुराने की ” साजिश” सुर्खियां बटोर रहा है। कहते हैं “चोर चोरी छोड़ सकता है लेकिन हेराफेरी नहीं” ये कहावत कोहिनूर चोरी करने वाले शख्स पर बखूबी फिट बैठता है। याद कीजिए वो दौर जब चर्चित “कांड” के आरोप में एक लंबे कद के शख्स को पुलिस गोवा से पकड़कर लाई थी और सड़क में उसकी बारात निकाली थी। समय बदला बदले लोग लेकिन नहीं बदले उनके लोग ..!
मौका मिलते फिर से मारने लगे हैं चौका..! खदान भी जाना पहचाना और रास्ता कौन सा अनजाना है। अब लाइजनरों की बात की जाए तो वे तो उनके घर पानी भरते हैं। लिहाजा कोहिनूर चोरी रात के अंधेरे में नही बल्कि दिन के उजाले में भी चल रहा है। हां ये बात अलग है कि स्थानीय लीडरों के मुंह बंद करने के लिए उन्हें भी अलग अलग जगह कांटा फिट कराकर अपनी टोली में शामिल कर लिया है।
सूत्र बताते हैं कि कोयले के काम में स्थानीय अधिकारियों की दखलंदाजी नहीं के बराबर है। वजह है “सबका मालिक एक”..! इसका लाभ उठाते हुए कोयला की तस्करी बैखौफ की जा रही है। हां एक बात का डर उन्हें भी सता रहा है कि पुलिस की दोस्ती और दुश्मनी दोनों में कम रिस्क नहीं है…!लेकिन कहते है न रिस्क है तो इश्क है…!
फील्ड की कहानी, बानी की जुबानी..
ट्राइबल जिला के निर्माण कार्यों की कहानी में ड्राफ्ट मैन की इंट्री के बाद नया ट्विस्ट आ गया है। आइये बताते हैं आपको बानी की कहानी फिल्ड की जुबानी ! दरअसल छात्रावास भवनों का निर्माण और उनकी मरम्मत में मलाई निकालने एक गिरोह काम रहा है जो अपने हिसाब से टेक्निकल टीम को अपाइंट करता है ताकि उच्चाधिकारी अपने हिसाब से उनका दस्तखत लेकर चाय से मक्खी की तरह फेंक सके।
पिछले कार्यकाल से तुलना करें तो यह बात सोलह आने सच साबित होती है। पूर्व में गुरूजी को इंजीनियर बनाकर फिल्ड में दौड़ाया गया और डिपॉर्टमेंट के महाराज ने विभागीय राशि को मथ -मथ कर निकाला और विवाद बढ़ने पर कागजों में गुरूजी फंसे तो उन्हें विभाग के कार्यों से अलग करते हुए मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया गया।
अब डिपार्टमेंट के महाराज “बानी” को बान चलाने और अपना काम कराने फील्ड में उतारे हैं। ये बात अलग है कि ड्राफ्ट मेन से मेजरमेंट कराने से गुणवत्ता कम और विभाग का इनकम बढ़ गई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि उनके एमबी बुक की जांच की जाए तो ठेकेदारों से रिकरवी भी हो जाये।
बानी के पदस्थ होते ही ट्रायबल डिपार्टमेंट में चल रहे निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे हैं क्योंकि जिन्हें दफ्तर में बैठकर कागज़ गिनना चाहिए वो फील्ड में जाकर टेक्निकल वेरिफिकेशन कर रहे हैं। खबरीलाल की मानें तो साहब है इतने भोले हैं कि ठेकेदार उन्हें चला दे रहे है तभी तो गुणवत्ता छोड़ कांट्रेक्टर के हिसाब से मेजरमेंट हो रहा है।
कोका कोला नहीं “कैम्पा गोला”
ठंडा मतलब कोका कोला… तो आपने सुना ही होगा। अब फारेस्ट विभाग में इसे बदलकर नया रूप दे दिया गया है। अफसर अब कोका कोला नहीं कैम्पा में गोला ही गोला कहते हैं। खबरीलाल की मानें तो कैम्पा मद के कामों में कमीशन नजराना में नहीं बल्कि जबराना में वसूला जा रहा है।
मतलब 60 फीसदी जबराना..! कहा तो यह भी जा रहा है कि इतने भारी भरकम कमीशन के बाद डिवीजन के अधिकारी गरीबी का बीन बजाते हैं और जंगल मे मोर नचवाते हैं। विभागीय पंडितों की माने तो 2 किमी के डब्ल्यूबीएम सड़क के लिए 30 लाख रकम सेंक्शन हो रहा है लेकिन जबराना इतना जबरदस्त है कि…! तो ठेकेदार भी “जितना पैसा उतना काम रघुपति राघव राजा राम ” का गाना गुनगुनाते हुए जंगल मे मंगल मना रहे हैं। किसका मंगल और किसका अमंगल हो रहा है यह देखना हो तो पसरखेत रेंज में बन रहे मुरुमीकरण को ही देख लीजिए।
जहां ठेकेदार अगल बगल की मिट्टी से सड़क की हाइट बढ़ाकर अपना पिंड छुड़ा रहा हैं। वैसे ये तो हुई जंगल की बात जो सिर्फ अधिकारी और कंट्रक्टरों की आपसी डील है, जो उन्हें ही समझ आती है। अब बात दफ्तर की करें तो यहां भी सांप की तरह कुंडली मारकर बैठे बाबू कम नहीं है जो फाइल में मोर नचावा रहे हैं और अधिकारियों के कलम को फंसवा रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा पूर्व कार्यकाल में डीएफओ जिस विभाग के बाबू को चोर कहती थी वह भी ऑफिस में बैठकर शोर मचा रहे हैं..!
राशन और शीर्षाशन
चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में राशन घोटले को जिन्न फिर बोतल से बाहर आने लगा है। अबकी बार कोरोना काल में गरीबों को मुफ्ट बांटे जाने वाले राशन का मामला उछाला जा रहा है। पिछले सरकार में चावल में कनकी यानि ::नान घोटाला:: से 15 साल से पदमासन में बैठी बीजेपी सरकार को शीर्षाशन की मुद्रा में आना पड़ा था। अब केंद्र से मिले 68 हजार मैट्रिक टन चावल घोटाला का सामने आया है।
पूर्व सीएम और सरकार के बीच लेटरवार चल रहा है। दोनों ओर से मामले की जांच के लिए लेटर लिखे जा रहे हैं। कई आरोप लगाए जा रहे हैं। मगर अब अफसरों और राशन दुकानों की मिलीभगत की बात राजभवन तक पहुंच गई है। राशन दुकानदारों को कहना है कि केवल दो महीने ही केंद्र से मिले राशन का वितरण किया गया है, जबकि स्टाक इंट्री दो साल की दिख रही है। खाद्य विभाग के अफसर उन पर दबाव बना रहे हैं कि वो बाकी 22 महीने का हिसाब सरकार को दें।
अब भला जब राशन का स्टाक दुकानों तक पहुंचा ही नहीं तो हिसाब कहां से दें। मामला यहां फंसता नजर आ रहा है कि जब दुकानों तक राशन पहुंचा ही नहीं तो हिसाब कहां से दें, उससे भी बड़ा सवाल ये है कि इन दो साल कि विभाग के अफसर क्या कर रहे थे। जो भी हो गरीबों को बांटे जाने वाले चावल में लगे घुन में कोई तो पिसेगा….अब वो अफसर हो पीडीएस दुकानदार……।
गरीबों के हिस्से डकारने वालों को हिसाब तो देना ही होगा! सरकार को भी ध्यान देना होगा गरीबों की आह तो भगवान भी माफ नहीं करता। जाहिर है वर्तमान सरकार को भी पदमासन छोड़कर शीर्षासन पर आना होगा, तभी मामले की हकीकत सामने आ पाएगी।
भरोसमंद हैं तो भरोसा दिलाएं
छत्तीसगढ़ में आज साजा के बिरनपुर में दो पक्षों के बीच हुए खूनी संघर्ष के खिलाफ बंद बुलाया गया है। शांति का टापू अशांत हो चला है। इससे पहले कवर्धा फिर बस्तर में भी यहीं बात सामने आई….! सूबे में धर्मसभा से लेकर संत समागम भी हुआ लेकिन ने तो संत शांति ला पाएं और न सरकार। सूबे में इस वक्त भरोसे वाली सरकार है तो इससे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि सरकार भरोसमंद हैं तो भरोसा दिलाएं…, शांति का टापू छत्तीसगढ़, कबीर और बाबा गुरु घासीदास की तपो भूमि है….यहां संतों को मानने वाले लोग बहुताया में रहते हैं। लेकिन बिरनपुर में जो कुछ हुआ उसे शांति को कतई नहीं कहा जा सकता।
सरकार के साथ कहीं न कहीं पुलिसिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं। हर बार सरकार की पुलिस स्थित नियंत्रण में कह कर पल्ला झाड़ लेती है….सरकार और अफसर इससे बचना होगा। जब तक जवाबदेही से बचने के प्रयास होंगे…तब तक शांति की बात बेईमानी होगी। फिलहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि बिरनपुर की घटना के लिए जिम्मेदारों की जवाबदेही तय की जाएगी…और छत्तीसगढ़ शांति का टापू बना रहेगा।