IAS के 10वीं क्लास के नंबर देख लोग बोले- बच्चा काबिल बनो, कामयाबी तो झक मारके पीछे भागेगी!

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न्यूज डेस्क। जिंदगी में नंबर ही सब कुछ नहीं। अगर 10वीं और 12वीं का रिजल्ट अच्छा नहीं आया है, तो निराश होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि परीक्षा में खराब नतीजे आने से करियर के सभी रास्ते बंद नहीं हो जाते। अगर यकीन नहीं होता, तो भरूच कलेक्टर की ये कहानी इसका सबूत है। दअरसल, एक आईएएस अफसर ने ट्विटर पर भरूच (गुजरात) के कलेक्टर और उनकी 10वीं की मार्कशीट शेयर की, जिसे देखने के बाद कलेक्टर लोगों के लिए प्रेरणा हैं।
सबने कहा कि कुछ नहीं कर सकते!

यह कहानी छत्तीसगढ़ कैडर के IAS ऑफिसर अवनीश शरण ने 11 जून को ट्विटर पर शेयर की। उन्होंने अधिकारी और उनकी 10वीं की मार्कशीट की तस्वीर साझा कर बताया, ‘भरूच के कलेक्टर तुषार सुमेरा ने अपनी दसवीं की मार्कशीट शेयर करते हुए लिखा है कि उन्हें दसवीं में सिर्फ पासिंग मार्क्स आए थे। उनके 100 में अंग्रेजी में 35, गणित में 36 और विज्ञान में 38 नंबर आए थे। ना सिर्फ पूरे गांव में बल्कि उस स्कूल में यह कहा गया कि यह कुछ नहीं कर सकते। लेकिन तुषार ने मेहनत और लगन से वो मुकाम हासिल किया कि जिसके बाद सबके मुंह बंद हो गए। बता दें, इस ट्वीट को 17 हजार से अधिक लाइक्स और 3 हजार रीट्वीट्स मिल चुके हैं।

इसके बाद IAS के ट्वीट के जवाब में कलेक्टर तुषार ने ‘थैंक्यू सर’ लिखकर उसका जवाब दिया। यूजर्स का कहना है कि डिग्रियां सिर्फ कागजी टुकड़ा हैं और कुछ नहीं। किसी ने कहा कि डिग्री नहीं आपका टैलेंट मैटर करता है। कईयों ने लिखा कि लगन और मेहनत के दम पर कुछ भी पाया जा सकता है। लेकिन उसके लिए आप जब जागो तभी सवेरा है। इसलिए सोचिए मत… जाग जाइए और उन लोगों का मुंह बंद कर दीजिए, जो बोलते हैं कि आप कुछ नहीं कर सकते।

‘बच्चों पर मार्क्स का प्रेशर मत बनाइए’

बता दें, तुषार डी सुमेरा वर्तमान में भरूच जिले के कलेक्टर के रूप में कार्यरत हैं। साल 2012 में UPSC परीक्षा पास करके वो IAS अधिकारी बने थे। आज तुषार करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणादायक है। इससे पहले आईएएस नितिन सांगवान ने अपनी 12वीं की मार्कशीट ट्वीट कर बताया था केमिस्ट्री में मुझे सिर्फ 24 मार्क्स मिले थे। ये पासिंग मार्क्स से सिर्फ एक अंक ज्यादा था। लेकिन इन मार्क्स से यह तय नहीं हुआ कि मुझे अपने जीवन से क्या चाहिए। बच्चों पर मार्क्स का प्रेशर मत बनाइए। जिंदगी बोर्ड एग्जाम से कहीं ज्यादा है। रिजल्ट को आत्मनिरीक्षण का मौका समझें, न कि क्रिटजिज्म का।