KORBA: मिली तारीख..कोर्ट के आदेश की अवमानना.!!  लैब संचालिका पर कार्यवाही करने क्यो कांप रहें हाथ.. अब (कब) होगा न्याय ?

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कोरबा। वादी की जिस आवेदन पर शुरुआत में पुलिस प्रकरण पंजीबद्ध नहीं करती है लेकिन उसी प्रकरण जब में न्यायालय से केस दर्ज कराने का आदेश मिलता है तो पुलिस चार्जशीट भी दाखिल करती है। पुलिस के इसी दोहरी कार्यप्रणाली से पब्लिक पर संदेह करती है।

किसी प्रकरण में जब पुलिस प्रकरण दर्ज नहीं करती है, तो उस परिस्थिति में यह व्यवस्था की गई है कि वादी धारा 156(3) के तहत न्यायालय की शरण ले। तब न्यायालय वादी के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करने के बाद पुलिस को मुकदमा दर्ज करने का आदेश देती है, या उसे प्रकरण में बदल कर खुद सुनवाई करती है।  ऐसे प्रकरणों में जांच के लिए एक तय समय सीमा निर्धारित करते हुए न्यायालय गुण-दोष के आधार पर पुलिस को विवेचना कर उसकी पूरी रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करने को निर्देशित करती है।

यहां यक्ष प्रश्न यह उठता है कि पहले जिस आवेदन पर पुलिस मुकदमा लिखने से मना कर चुकी होती है, उसी प्रकरण न्यायालय के आदेश के बाद चार्जशीट कैसे दाखिल करती है जबकि पुलिस ऐसे मामलों को पहले झूठा बताकर मुकदमा दर्ज करने से इंकार कर चुकी होती है। कई बार ऐसा भी होता है जब न्यायालय के द्वारा निर्देशित किये जाने के बाद भी टाल मटोल की नीति चलती है।

ऐसे ही एक प्रकरण में न्यायालय के आदेश की किस तरह अवहेलना हो रही है। इसका उदाहरण लैब संचालिका पर 1 महीना 12 दिन यानि लगभग डेढ़ महीने  बीतने के बाद भी एफ.आई.आर. दर्ज न होने से लगाया जा सकता है। आखिर क्यों कोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस के हाथ कार्यवाही से कांप रहे है ? न्यायालय के आदेश के बाद एक “तारीख” परिवादिनी को और मिली है, देखने वाली बात यह होगी कि क्या अब अगली तारीख पर होगा न्याय ??

कोरबा जिला मुख्यालय जहां सारे प्रशासनिक अधिकारियों की फौज है, मंत्री हैं तो ग्रामीण क्षेत्रों की क्या स्थिति होगी इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

” समरथ को नहिं दोष गोसाई ” जो सामर्थ्यवान ,सशक्त है उनका हर काम सही होता है चाहे कितनी बड़ी गलती हो, उस गलती में उनका दोष नहीं माना जाता। तुलसीदास की यह चौपाई शहर की एक लैब संचालिका पर फिट बैठता दिख रहा है। मामला एक कोरोना काल के दौरान कोविड टेस्ट से जुड़ा है। जिसे लेकर जिला न्यायालय के अतिरिक्त मुख्य न्यायायिक मजिस्ट्रेट, कोरबा ने एक परिवाद पर सुनवाई के पश्चात एडवांस डायग्नोस्टिक सेंटर की संचालिका के खिलाफ एफ.आई.आर.  दर्ज करने का आदेश दिया था। न्यायालय के आदेश के 1 महीना 8 दिन बीतने के बाद भी मामला दर्ज न होना न्यायालीन आदेश के प्रति पुलिस की गंभीरता को दर्शाता है। 28 अप्रैल तक एफ.आई.आर. दर्ज करने का आदेश न्यायालय ने दिया था।

 

कहा तो यह भी जा रहा है कि शहर में इन दिनों पुलिस चेहरा देख कर टीका लगा रही है। हम बात कर रहे है उस परिवार की जिन्होंने कोविड टेस्ट रिपोर्ट में हुई देरी की वजह से पूरे घर का दायित्व सम्हालने वाले अपने प्रिय परिजन को असमय ही खो दिया। डॉक्टर की लापरवाही से हुई मौत के संबंध में न्याय की आस के साथ परिवाद कोरबा न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। विद्वान न्यायाधीश  आर.एन. पठारे ने  सारे दस्तावेजो और परिवादिनी पक्ष की ओर से तथ्यों के साथ अकाटय तर्कों को सुनकर एडवांस डायग्नोस्टिक सेंटर की लापरवाही मानते हुए एडवांस डायग्नोस्टिक सेंटर की

संचालिका पर अपराध दर्ज करने का आदेश जारी किया। आदेश जारी होने के बाद भी 1 महीना 7 दिन गुजर गए पर C.S.E.B. चौकी द्वारा अब तक अपराध पंजीबद्ध नही किया गया है। मतलब साफ है कि दबाव की वजह से अपराध दर्ज करने में पुलिस के हाथ कांप रहे है, जबकि C.S.E.B. चौकी को परिवाद की प्रति सहित न्यायालय का मेमो प्राप्त हो चुका है।

 

ये था मामला

 

प्रकरण में परिवादिनी कुसुमलता साहू ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में परिवाद दायर करते हुए बताया कि वह 31/10/2020 की शाम को अपने पिता दिलेश्वर प्रसाद साहू को कोविड टेस्ट के लिए ट्रांसपोर्ट नगर, कोरबा स्थित एडवांस डायग्नोस्टिक सेंटर लेकर गई थी और वहां समय पर कोविड टेस्ट की रिपोर्ट नही दिए जाने के कारण इलाज के अभाव में उसके पिता दिलेश्वर प्रसाद साहू की अकाल मृत्यु हो गई। परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र में उल्लेख किया गया है कि आरोपीगण के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में अपनी गलती छिपाने के लिए जानबूझकर फर्जीवाड़ा करते हुए सैंपल लेने व सैंपल रिपोर्ट जारी करने के समय में फर्जीवाड़ा किया गया है। सैंपल लेने का समय 1 नवंबर की सुबह 10 बजे तथा रिपोर्ट जारी करने का समय 10:06 बजे दर्शित किया गया है जबकि दिलेश्वर प्रसाद साहू  की मृत्यु 2 घंटे पूर्व हो चुकी थी। परिवादिनी के द्वारा मृत्यु के संबंध में दस्तावेज भी पेश किए गए हैं कि मृत देह मोर्ग में रखी हुई थी।

 

पढ़े क्या था आदेश

 

प्रस्तुत परिवाद में आरोपीगण के विरुद्ध धारा – 468, 471, 188, 201 व 304(क) भा.द.सं. के अंतर्गत कार्यवाही करने की मांग परिवादिनी द्वारा किए जाने पर अति. मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, पीठासीन विद्वान न्यायाधीश आर. एन. पठारे ने दिनांक – 22.03.2022 को अपने आदेश में लिखा है कि तथ्य से प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का होना दर्शित होता है। उन्होंने अपने आदेश में CSEB चौकी पुलिस को FIR पंजीबद्ध कर कार्यवाही करने के लिए निर्देशित किया है। परिवादिनी की ओर से अधिवक्ता अनीष कुमार सक्सेना ने पैरवी करते हुए पक्ष मजबूती से रखा था।