The Duniyadari: Pong Dam का 50 वर्षों का रिकॉर्ड जल प्रबंधन में बढ़ती अनिश्चितता को उजागर करता है।
पंजाब, 8 सितंबर 2025।
पंजाब में ब्यास नदी पर बने Pong Dam (पौंग बांध) का लगभग पांच दशकों का रिकॉर्ड इस क्षेत्र में जल प्रबंधन की अनिश्चितताओं को उजागर करता है। बांध का जलस्तर पिछले 50 वर्षों में उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिससे न केवल बाढ़ और सूखे की घटनाएँ बढ़ी हैं, बल्कि सिंचाई और बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ा है।
1974 में अपने निर्माण के बाद से पौंग बांध का उद्देश्य पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के खेतों की सिंचाई करना और राष्ट्रीय ग्रिड के लिए बिजली उत्पादन करना था। शुरुआती दशकों में बांध ने इस लक्ष्य को सफलतापूर्वक पूरा किया। उदाहरण के लिए, 1975 में बांध का जलस्तर 1,163.8 फीट से 1,376.3 फीट तक बढ़ा। वहीं, 1978 में भारी मानसून के बाद जलाशय 1,405 फीट तक पहुँच गया, जो अब तक का उच्चतम स्तर है।
1980 और 1990 के दशकों में यह स्तर बार-बार 1,390 फीट से ऊपर रहा। लेकिन 2000 के दशक में इसका जलस्तर धीरे-धीरे गिरने लगा। 2007 में अधिकतम ऊँचाई केवल 1,365.28 फीट रही और 2009 में 1,339.46 फीट पर पहुँच गई। हाल ही में, 2023 में भयंकर मानसून के बाद यह 1,398.68 फीट पर पहुँचा।
पौंग बांध के जलस्तर में इस तरह का उतार-चढ़ाव मानसून की अनियमितता और जलग्रहण क्षेत्रों से आने वाली तलछट के कारण है। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड के अध्ययन के अनुसार, बांध ने अपनी मूल क्षमता का लगभग पाँचवाँ हिस्सा खो दिया है।
जलाशय के इस संकट का सीधा असर पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसानों पर पड़ता है। जब जलस्तर कम होता है, तो सिंचाई के लिए आवंटन घटाया जाता है, जिससे किसानों को भूजल पर निर्भर रहना पड़ता है। वहीं, बिजली उत्पादन भी प्रभावित होता है क्योंकि टर्बाइनों को पर्याप्त जलस्तर की आवश्यकता होती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में बाढ़ और सूखे जैसी चरम परिस्थितियों से निपटने के लिए जलग्रहण क्षेत्र में वनरोपण, मृदा संरक्षण और व्यवस्थित ड्रेजिंग जैसी उपायों की आवश्यकता होगी। साथ ही, सटीक वर्षा पूर्वानुमान और बेहतर जलाशय प्रबंधन से बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और बिजली उत्पादन के बीच संतुलन बनाया जा सकता है।
पौंग बांध का अर्ध-शताब्दी का रिकॉर्ड उत्तर भारत में जल प्रबंधन की चुनौतियों और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। विशेषज्ञों का निष्कर्ष है कि बड़े जलाशयों के साथ-साथ पारिस्थितिक प्रबंधन और अनुकूली योजना की भी आवश्यकता है, अन्यथा भविष्य में क्षेत्र में विनाशकारी बाढ़ और सूखे जैसी परिस्थितियाँ आम हो सकती हैं।
—