Friday, March 29, 2024
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Why the uproar : ईडी और शराब घोटाला “युवराज” आये और गये…सरोवर बन रहा नेता जी का धरोहर,पहले बकरा कटा और अब मिठाई…

ईडी और शराब घोटाला

मनी लॉन्ड्रिंग और कोयला परिवहन घोटाला के बाद काफी दिनों बाद छत्तीसगढ़ में डेरा जमाए बैठी ईडी की टीम ने अब छत्तीसगढ़ में आबकारी घोटाला को लेकर कांग्रेस से जुड़े एक नेता के भाई हो को पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया है। ईडी की ओर से बताया गया है कि सरकार ठेको और बार में नकली स्टीकर लगाकर शराब बेची जा रही थी।

इस मामले में एक अफसर बड़े अफसर सहित कई सफेदपोश लोगों की संलिप्तता सामने आई है। हालांकि अभी ईडी के हाथ केवल डिजिटल साक्ष्य ही हाथ लगे हैं मगर आगे की पूछताछ में इसकी आंच और भी लोगों तक पहुंच सकती है।

वैसे तो दिल्ली में आबकारी नीति घोटाला को लेकर केजरीवाल सरकार के डिप्टी सीएम अभी जेल में हैं। मगर शराबबंदी वाले छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में शराब घोटाला का मामला सामने आना गंभीर मसला है। शराबबंदी को लेकर विपक्ष वैसे ही सरकार पर हमलावर है।

अगर ईडी के हाथ कोई पुख्ता सुबूत हैं तो से और भी गंभीर मामला है। ईडी की ओर से कोर्ट को बताया गया है कि पूरा मामला 2000 हजार करोड़ का है। ये पिछले 4 साल में हुआ, वो भी तब प्रदेश में शराब की तस्करी रोकने के लिए सरकारी ठेकों की शुरुआत हुई। फिलहाल ईडी इसके तार जोड़ने में लगी है। बताया जा रहा है इस तार में कुछ जिलों के आबकारी अफसर भी उलझने वाले हैं।

“युवराज” आये और गये…

वैसे तो देश एक युवराज हमेशा सुर्खियों में रहते हैं लेकिन, इन दिनों पेंड्रा के युवराज भी चर्चा में है। मामला ही कुछ ऐसा है कि चर्चा तो बनती है। दरअसल पेंड्रा के युवराज की पोस्टिंग से स्मार्ट पुलिस अफसर मध्यम मुस्कान बिखेरने लगे थे। उम्मीद थी उनके कोरबा आने के बाद दूरस्थ अंचल में बैठे थानेदारों के भी दिन बहुरेंगे..!

लेकिन, ऐसा हुआ नहीं आमद देने के बाद बॉस से छुट्टी की अर्जी लगा दी तो कप्तान तो ठहरे दिलेर उनके अर्जी पर मर्जी का मुहर लगा दी..! मतलब युवराज आये और गये… तो खाकी के खिलाड़ियों के उम्मीद पर पानी फिर गया।

वैसे तो कुछ थानेदार कभी काली रतिया कभी दिन सुहाने, किस्मत की बातें तो किस्मत ही जाने” का गाना गुनगुनाकर दिल बहला रहे हैं। खबरीलाल की माने तो ट्रांसफर से रुष्ठ लोगों को अगले लिस्ट की बेसब्री से इंतजार है और उनकी पूरी रात करवटें बदलते गुजर रही है।

सरोवर बन रहा नेता जी का धरोहर

जल बचाने के लिए जलसंरक्षण को लेकर केंद्र सरकार अमृत सरोवर योजना चला रही है लेकिन, उर्जाधानी के एक माननीय सरोवर को पाटकर अपने लिए धरोहर बना रहे हैं। वैसे तो कुआं और तालाब बनवाना पुण्य काम माना जाता है। श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि सरोवर का निर्माण करने वाला तर जाता है। लेकिन, बदलते समय में अब पाप-पुण्य को घाट पर रखकर पढ़े लिखे गुणी लोग भी तालाब को पाटकर नोट इकट्ठा करने में लगे हैं।

बात मोतीसगर पारा के एक तालाब की है। वैसे तो ये निजी तालाब है, लेकिन निजी होने के बाद भी उसका लैंड यूज चेंज नहीं किया जा सकता। इसके बाद भी नेता जी तालाब को समतल कराकर दुकान और मकान बनाने की फिराक में हैं। अगर माननीय की बात की जाए तो वे पाप पुण्य के साथ साथ हर वार्ड के वोटरों की गिनती मुंहजबानी याद रखते है। बस याद नहीं है तो अपना धर्म और लोगों का मर्म…।

उनके बारे में कहा तो यह भी जाता है कि फायदे के लिए कभी वे हिटलर बन जाते हैं और कभी शहर का प्लानर..! वैसे तालाब पर रहीम का एक दोहा भी उन पर सटीक बैठता है ” रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सुन, पानी गए न उबरे मोती मानुस चुन…!

रहीम कवि यहां पर जल संरक्षण का सहारा लेकर आदमी को अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने की सीख दी है, लेकिन यहां जल संरक्षण के लिए खोदे गए तालाब में कब्जा कर अपने आन बान शान को दांव में लगाने में भी माननीय उल्टा दोहा बाचने में माहिर हैं।

पहले बकरा कटा और अब मिठाई बंटी

जिले के एक मनरेगा बाबू का ट्रांसफर क्या हुआ रोजगार सहायक खुशी से झूम उठे। इस पल को यादगार बनाने के लिए बकरा काट दिया और जमकर पार्टी मनी। बात यहीं तक रुकती तो ठीक था, लेकिन चर्चा है कि नेतानुमा सचिवों ने सीईओ के ट्रांसफर पर मिठाई बांट दी है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कोरबा ब्लाक के सचिवों ने मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारा जाकर सीईओ के ट्रांसफर के लिए अर्जी लगा रहे थे।

उनका अर्जी लगाना भी वाजिब था क्योंकि साहब भ्रष्ट सचिवों की कुंडली बाछ रहे थे और कुछ बिगड़ैल सचिवों को फरारी का सैर भी..। साहब के तेवर को भांपते हुए सचिवों का पूरा कुनबा उनके ट्रांसफर की मन्नतें मांग रहा था। ये बात अलग है कि उनके मन्नते के बाद भी साहब कड़े और बड़े निर्णय लेते रहे और जब उनका रूटीन ट्रांसफर आदेश सरकार ने जारी किया तो विरोधी खेमा खुश हो।

इस खुशी इजहार करने के लिए कुछ सचिवों ने हड़ताल के पंडाल पर मिठाई भी बांट दी..! अब बात बाबू साहब की करें तो फर्जी मस्टररोल बनाने में कांटा बन रहे बाबू का जब ट्रांसफर हुआ तो रोजगार सहायकों का खुश होना लाजमी था। सो हुआ भी यही और यूनियन ने एक रॉय होकर पार्टी मनाई।

हंगामा क्यों बरपा

5 दिन बाद कर्नाटक में नई सरकार आ आएगी और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरु हो जाएगी। वैसे तो चुनावी साल में जीत हासिल करने के लिए पार्टी की सबसे बड़ी ताकत वर्करों की एकजुटता को माना जाता है। मगर, अंबिकाकपुर के दरिमा एयरपोर्ट में कांग्रेस के पदाधिकारियों लाबी में रोकने से जो हंगामा ​मचा उसने कहीं ना कहीं पार्टी की एकजुटता की कमजोर कड़ी को सबके सामने ला दिया।

सरकार के अफसरों, पुलिस और कार्यकर्ताओं का विवाद गाली गलौज तक पहुंचा। हालांकि बाद में एक बड़े नेता ने अपने समर्थकों को शांत रहने की समझाइश देकर मामले को अंडर कंट्रोल कर लिया मगर, इसकी आवाज पूरे प्रदेश में सुनी गई। मामला वीआईपी दौरे में सरकार के प्रोटोकाल नियम से जुड़ा है। लिहाजा प्रोटोकाल का पालन करने कराने को पूरा जिम्मा वहां तैनात रहने वाले अफसरों पर था।

अगर प्रोटोकाल का पालन करने में कहीं नियमों की अनदेखी हुई तो इसके लिए अफसरों को जिम्मेवार माना जाएगा और कार्यकर्ता इस पर सवाल उठाए तो इसे पार्टी की एकजुटता पर ही सवाल माना जाएगा। जो भी हो मामला इतना सीधा और सरल नहीं है जितना दिखाया जा रहा है।

प्रदेश में कई बार वीआईपी दौरे के समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गुस्सा सामने आ चुका है, कुछ मंत्री और विधायक भी ऐसा ही आरोप लगा चुके हैं सरकारी मशीनरी में बैठे अफसर की उनकी बात सुनते ही नहीं।

अगर आगे भी ऐसा ही चलता रहा तो प्रोटोकाल का पालन करने से हो रही अफसरों की चूक,पार्टी के लिए बड़ी चूक साबित हो सकती है। चुनावी साल में अफसरों को चूक नहीं सूझबूझ से काम लेना होगा….अन्यथा वर्करों को गुस्सा भारी पड़ सकता है। जैसा कि दरिमा एयरपोर्ट में पिछले दिनों देखने को मिला।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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