The Duniyadari: उत्तर भारत में गर्मी से आम आदमी ही नहीं अपराध पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी लेने वाली एजेंसिया भी परेशान हैं. पुलिस की यह समझ नहीं आता कि आखिर गर्मियों में ही अचानक क्राइम क्यों बढ़ गया. प्रयागराज में तो एक हफ्ते में पांच हत्याएं हो गई तब पुलिस कमिश्नर को इमरजेंसी क्राइम कंट्रोल मीटिंग बुलानी पड़ी. मीटिंग में जिस बात पर सबसे अधिक जोर दिया गया, वह है गर्मियों में बढ़ते अपराध को कैसे रोका जाए.
अभी तक पुलिस इसका समाधान नहीं खोज पाई, लेकिन इस गुत्थी को देश के प्रतिष्ठित संस्थान मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक विभाग ने सुलझा लिया है. एक शोध में इस संस्थान ने हत्या का समय, तरीका, कारण, लिंग, धर्म सहित अन्य पहलुओं का बारीकी से अध्ययन किया. जिसके बाद यह तथ्य सामने आए है कि सालभर में होने वाली हत्याओं में केवल गर्मी में 51.33 फीसदी हत्याएं हुई हैं. शोध में यह भी सामने आया कि सर्दी में 28 और बारिश में 20.6 फीसदी हत्याएं हुई हैं. गर्मी में होने वाली इन हत्याओं में ग्रामीण क्षेत्रों में 76 और शहर में 24 फीसदी हत्या के मामले सामने आए.
क्यों बढ़ता है अपराध?
शोध कर रही टीम की प्रभारी डॉ अर्चना कौल ने कहा कि गर्मी की तपिस बढ़ने पर मानव शरीर के अंदर बह रहे खून में पहले से मौजूद एक रसायन इम्प्रामीन का विघटन शुरू हो जाता है. यह रसायन जैसे ही मानव शरीर के खून में घुलने लगता है तो मनुष्य सही निर्णय नहीं ले पाता. उसमें हाइपर एक्टिविटी के लक्षण आने लगते है और वह इंसान हर बात पर अपना धीरज खोने लगता है.
इसी हाइपर एक्टिविटी के कारण ही इंसान में अहम बढ़ जाता है और उसे लगने लगता है की वह जो कर रहा है वही सही है. युवाओं में इसकी वजह से बदले की भावना में इजाफा हो जाता है तो वहीं बड़ी उमर के लोगों में भी फैमिली रिवेंज की भावनाएं बढ़ने लगती हैं. जिसके चलते झगड़ों में इजाफा होने लगता है. इन सब का मिला जुला असर यह होता है कि हत्या और मारपीट की घटनाए बढ़ने लगती हैं और गर्मी में अपराध का आंकड़ा तेजी से बढ़ना शुरू हो जाता है.