कोयला के कलाकार…पुती कालिख
1997 में एक फ़िल्म आई थी ‘कोयला’ जिस एक गाना “काले लिबास में … जैसे हीरा निकल रहा हो कोयले की खान से” हिट हुआ था। इसी गाने की तर्ज पर आज एसईसीएल खदान अधिकारियों के लिए हीरा साबित हो रहा है। दरसअल खान के अंदर चल रहे कारोबार को सुनकर हर कोई यही कहेगा, कि वास्तव में कोयला नहीं हीरा है…अब आपको बताते चले कि एसईसीएल की खान से निकलने वाला कोयला अधिकारियों के लिए कैसे हीरा साबित हो रहा है। कोयला निकालने में अधिकारियों की जमकर कलाकारी चल रही है। खबरीलाल की माने कोयला उत्पादन के ये कलाकार पहले श्रेय लेने के लिए कम उत्पादन को अधिक बताकर पीठ थापथवाये थे, अब उसी क्राइसेस को फुलफील करने ज्यादा उत्पादन को कम बताकर स्टॉक मेन्टेन करने में लग गए हैं, जिससे उनकी पोल उच्च अधिकारियों के सामने न खुल जाए। इस तरह की कलाकारी तो हर साल होती है पर इस साल लगातार हो रहे कोयला उत्पादन की समीक्षा ने फोटो शूट कराने वाले अधिकारियों की पोल खोल कर रख मुंह पर कालिख पोत दी है। कहा तो यह भी जा रहा है कि उत्पादन और डिस्पैच के आंकड़ों में जमीन-आसमान का अंतर है। खैर कोयला के कलाकारों के लिए काला हीरा काली कमाई का जरिया बन गया है।
टेण्डर मैनेज और ट्राइबल..टेंशन हुआ मेंशन…
यूं तो मैं शायर बदनाम की तरह चलने वाले आदिवासी विभाग में गड़बड़ियां आम बात हैं, पर जिस डेयरिंग से इस बार टेण्डर मैनेज करने के लिए स्क्रिप्ट लिखी गई उसे लेकर बड़े से बड़े अपना माथा पीट रहे हैं। टेण्डर मैनेज के इस गेम में निगम के बाजीगर के अलावा, विभाग के तिकड़मी अधिकारी और छुरी के एक नेतानुमा ठेकेदार ने सारी पटकथा में मुख्य भूमिका निभाई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि जिस टेंडर को लेकर मैनेज करने का खेल खेला गया।उसके लिए शहर के एक होटल में बैठकर आपसी सहमति से काम बांटा गया है।इसके लिए बाकायदा विभाग के एक बाबू को टास्क दिया गया था और कहा गया था कि टेण्डर मैनेज हुआ तो इनाम के साथ-साथ नम्बर भी बढ़ेगा। सो बाबू ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी और टेण्डर को मैनेज कर दिखा दिया कि भले ही कद से छोटे है तो क्या हुआ.. बड़े से बड़ा काम कर सकते हैं। खैर जिस टेण्डर की बात कर रहे हैं वो लगभग 28 करोड़ का है, जिसके लिए कई तरह की रणनीतियां तैयार की गई। जिसमें रकम के साथ साथ गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा गया था। हां ये बात अलग है कि अब वे ठेकेदार अब अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं क्योंकि, काम अभी शुरू नहीं हुआ है और टेंशन मेंशन हो गया है।
0.आई+टी यानि रूतबे वाली बात..
आई+टी यानि आई चाय ना अब इसे जोड़कर पढ़ें…आई+टी यानि आईटी मतलब इंकम टैक्स डिपार्टमेंट….हो गया न चाय का मजा किरकिरा। ज्यादातर लोगों की दिन की शुरुआत ही चाय की चुस्की से होती है…यानि आई+टी…। कोरबा में इन दिनों चाय की चुस्की से अपना दिन शुरु करने वाले लोगों में भी आईटी की चर्चा है। वैसे तो आईटी आज मीडिया की हेडलाइन में रोज आती रहती है पर अपने शहर में अगर आईटी वाले आ गए तो समझो की रुतबा बढ़ने ही वाला है। किसी ऐरेगैरे के घर तो आईटी आती नहीं उन्हीं घर आईटी आती जिनका सोसायटी और सरकार में रुतबा हो।
फिर जब अपने शहर कोरबा में आईटी आई तो अपना भी रुतबा कैसा किसी से कम होगा। खबरी लाल के एक परिचित किसी काम से दिल्ली जा रहे थे वाया नागपुर मगर कम्बख्त रेल का कंफर्म टिकट नहीं मिला….जैसे तैसे डिब्बे में जगह मिल पाई…। कोने के एक सीट पर थोड़ी सी गुंजाइश दिखी…लपक पड़े। सीट पर पहले से बैठे सज्जन ने सज्जनता छोड़कर पहले तो जोर से आंखें तरेरी फिर पूछा कहां तक जाना …जी दिल्ली तो उन्होंने कोई भाव नहीं दिया। सीट की गरज में बात आगे बढ़ाना जरूरी था। खबरीलाल के परिचित ने बात आगे बढ़ते हुए कहा जी मैं कोरबा से आ रहा हूं। बस इतने कहना ही था कि वो बोल उठे अच्छा वही कोरबा जहां आईटी वाले पहुंचे हैं। वो सज्जन सीट पर सिकुड़कर जगह देते हुए बोले कोई बात नहीं आराम से बैठिए एडजेस्टमेंट कर लेते हैं। उनके चेहरे का भाव बता था शायद वो कोई रिटायर्ड सरकारी मुलाजिम थे या आईटी के मारे ठेकेदार…। ….यानि अब तक आप समझ गए होंगे आई+टी यानि रूतबे वाली बात।
काम कर गई सिफारिश..
यू तो बड़े ओहदे पर किसी को उनके काम के आधार पर बैठाया जाता है। लेकिन, दौर सिफारिशों का है.. बिना सिफारिश के कुछ होने वाला नहीं। जिले में एक अफसर को कुछ माह पहले ही उनकी शिकायतों के मद्देनजर वहाँ से हटा दिया गया था। नई जगह में आने के बाद उनके अधिकारी ने उन्हें फ्री हैंड भी कर दिया था। मगर साहब को फ्री हैंड से ज्यादा फुल हैंड चाहिए था। चाहे कहीं भी मिले, फुल हैंड की सिफारिश गाहे बगाहे जारी थी। पिहरीद में राहुल के रेस्क्यु के दौरान कुछ नेताओं से मुलाकात भी हुई। एक तरफ सब की निगाह राहुल के बाहर आने पर टिकी थी, वही यह साहब काम के साथ अपनी सिफारिशों को भी रखने में नहीं चूके..आखिरकार राहुल बाहर आया और साहब की सिफारिश भी काम आ गई। अब साहब जिले में फुल हैंड के साथ विदा भी हो लिए..आखिरकार सिफारिशों का जमाना है।