गंदा है पर धंधा है…
गंदा है पर धंधा है… ये पंक्ति नदी उस पार के चर्चित अवैध डीजल कारोबारी पर फिट है जो नए साहब के आते ही रडार पर रहता है और फिर कुछ दिन बाद ख़ाकी का आशीर्वाद! वैसे तो चर्चित कारोबारी का कारोबार जिले में सभी को मालूम है। डीजल के अवैध कारोबार औऱ कटघोरा पुलिस की कार्यप्रणाली भी बदनाम गलियों में सुर्खियां बटोर रही है। कहा तो यह भी जा रहा कि पहले उसे गिरफ्तार और फिर उस पर प्यार…आखिर ये रिश्ता क्या कहलाता है?
जिस अंदाज में डीजल की अवैध खरीदी और बिक्री की जा रही हैं, उससे सख्त पुलिसिंग पर भी पब्लिक की कई चर्चाएं हैं। हां ये बात अलग है कि पहले सिर्फ कोयला की खान चोरी के लिए बदनाम रहती थी अब नदी उस पार के अवैध कारोबारी ने कोसा नगरी को बदनाम कर दिया है।
खबरीलाल की माने तो ये अवैध कारोबारी का हमेशा एक पैर रेल में औऱ एक पैर जेल में रहता हैं। कोसा नगरी में चल रहे डीजल के धंधे ने कोयला खान के डीजल चोरों की राह आसान कर दी है और वो भी खान का कमान संभालने के लिए जुगाड़ में कामयाब हो गए हैं।
मिस्र के पिरामिड और शहर के आडोटोरियम.. No मीटिंग only सेटिंग
मिस्र के पिरामिड की तर्ज पर बने शहर के चारों दिशाओं में बने आडोटोरियम की चर्चा भी खूब सुर्खियां बटोर रही हैं। मिस्र के पिरामिड एक ऐसे स्मारक स्थल हैं जिसमें राजाओं के शवों को दफनाने के लिए बनाया गया। अब शहर के चारों दिशाओं में बने आडोटोरियम को क्यों बनाया गया हैं। इसकी खोज शहर के विशेषज्ञ कर रहे हैं क्योंकि जिस अंदाज में गीतांजली भवन, इंदिरा स्टेडियम,कलेक्टोरेट कार्यालय, पुराना कोर्ट और जिला जेल के समीप बने हैं उसे देखकर सहज ही कयास लगाया जा सकता है कि असल खेला क्या है…?
गली-गली में बने सामुदायिक भवन की तर्ज पर बने शहर के इन सरकारी आडोटोरियम में साल भर में एक दो कार्यक्रम हो जाए है तो बहुत है बाकी रखरखाव और सफाई का पैसा भी सरकारी खजाने से जा रहा हैं। शहर में बने इन आडोटोरियम को बनाने की सलाह तत्कालीन आज के राजाओं ने मिस्र के राजाओं की तरह दी। तभी तो उसी अंदाज में इसे शहर के चारों दिशाओं में बनाया गया।
अब करोड़ों रूपए जिस समाज मे सिर्फ मीटिंग के लिए खर्च किया जाता हो तो वहां के विकास का क्या कहना ! खैर पब्लिक का पैसा है और कमीशन का खेला तो क्यों न लगाएं मेला। वैसे चर्चा तो इस बात कि भी हैं की शहर में बने इन मिस्र के पिरामिडों के इतिहास के बारे में जानकारी के लिए एक ईएसआई हॉस्पिटल के समीप लाइब्रेरी भी बनाया गया है। गूगल युग में ये लाइब्रेरी भी समझ से परे है।
तुम बोलो तुमने खोया क्या पाया…
कवि गजेंद्र प्रियांशु की ये पंक्ति तुम बोलो तुमने जीवन मे क्या खोया क्या पाया, कौन पराया अपना हो गया अपना कौन पराया! हड़ताली कर्मचारियों पर फिट बैठता दिख रहा हैं। बिना मांग पूरी हुए हड़ताल खत्म करने की घोषणा पर जनता पूछ रही है कि आखिर हड़ताल से क्या खोया और क्या पाया?
वैसे तो इस हड़ताल में हड़तालियों को भले ही कुछ न मिला हो पर फेडरेशन के नेताओं को खूब माल मिला हैं। उड़ती खबर की माने तो जिले में लगभग 24 सौ स्कूल हैं और एक स्कूलों से हजार का चंदा, मतलब…
उसके बाद 52 विभाग भी हैं जिनसे भी हुआ धंधा.. और तो और साहब हड़ताल के पंडाल में चढ़ोत्तरी भी …, अब समझ सकते हैं हड़ताल में किसी को कुछ मिले या न मिले पर नेताओं को दोनों हाथ में लड्डू जरूर मिला है। वैसे कहा तो यह भी जा रहा है कि सरकारी स्कूल के बच्चे शिक्षकों का नाम अब भूलने लगे हैं।
सही भी है सप्ताह में कुछ दिन की ड्यूटी और हड़ताल ने छात्रों का मन शिक्षकों से टूटता जा रहा हैं। खैर अब सबसे बड़ी चुनौती इन शिक्षकों को है जो आंदोलन के समय चीख चीखकर कह रहे थे कि छात्रों के पढ़ाई को पूरा करने के लिए एक्स्ट्रा क्लास लगाएंगे।