नई दिल्ली। Sudan Civil War Germ Warfare: सूडान का गृहयुद्ध दुनिया भर में बायोलॉजिकल वार के रूप में बदल सकता है। इसे लेकर पहले से ही कई बड़े वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि जल्द से जल्द अगर इस युद्ध को नहीं रोका गया तो परिणाम काफी भयानक हो सकता है।
दरअसल सूडान में चल रहे गृहयुद्ध के बीच रैपिड सपोर्ट फोर्स ने नैशनल पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी पर कब्जा कर लिया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एक चेतावनी जारी करते हुए कहा है की लैब के गलत हाथ में जाने से जैविक युद्ध का खतरा बढ़ गया है।
सूडान की राजधानी खार्तूम में स्थित नैशनल पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी पर कब्जा कर लिया है। ये वही लैब है जिसमें पोलियो और खसरे सहित तमाम खतरनाक बीमारियों के वायरस और बैक्टीरिया रखे हुए हैं। रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स ने लैब तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं।
0 क्या होता है Germ Warfare
सरल भाषा में कहें तो जैविक हमले का मकसद आम युद्ध की तरह ही दुश्मन को मारना या कमजोर कर देना होता है। लेकिन इसके लिए गोली, बम-बारूद या किसी पारंपरिक हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
इस लड़ाई में कई तरह के खतरनाक वायरस, बैक्टीरिया और जहरीले पदार्थों से हमला किया जाता है। जैविक हमले के कारण लोग कमजोर पड़ने लगते हैं, फिर धीरे-धीरे बीमार पड़ जाते हैं या उनकी असमायिक मौत हो जाती है।
ऐसे में बायोलॉजिकल अटैक करने वाले का युद्ध जीतना आसान हो जाता है। जैविक हमले का इंसानी शरीर पर बहुत गंभीर असर पड़ता है। इसका असर आने वाली कई पीढ़ियों तक देखा जाता है।
जैविक हमले के बहुत सालों बाद तक कई मामलों में लोग विकलांग और साथ-साथ मानसिक बीमारियों के भी शिकार होते हैं। जैविक हथियार एक ऐसा हथियार होता है जो बेहद कम समय में बहुत बड़े क्षेत्र में भयानक तबाही का मंजर ला सकता है।
बता दें कि कोरोना वायरस का जन्म चीन के वुहान के लैब में हुआ था । वहीं से इस देश ने जानलेवा कोविड वायरस को पूरी दुनिया में फैलाया। इस वायरस ने पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की जान ले ली। आज भी इस वायरस से कारण लोगों की जान जा रही है विश्व के कई देश आज भी उबर नहीं सकें है।
कई देशों ने चीन पर यह भी आरोप लगाया की कोरोना महामारी के बाद कई देशों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बर्बाद हो गई, जिसका सीधा फायदा चीन को मिला है। इस वायरस को फैलाकर चीन दुनिया में अपना दबदबा बनाना चाह रहा था। इसीलिए उसे ऐसा षड्यंत्र रचा। हालांकि इसकी आज तक इस आरोप की पुष्टि नहीं हो सकी है।
पहले भी हुआ है जैविक हमला
बता दें की, पहले विश्व युद्ध के समय जर्मनी ने मलेरिया और हैजे से संक्रमित लाशों को दुश्मन देश के इलाके में फेंक दिया था। जिसके बाद दुश्मन देश का कोई भी सैनिक या आम लोग जैसे ही इन लाशों के संपर्क में आता था, तो वह भी संक्रमित हो जाता था।
कहा यह भी जाता है कि उस समय जर्मन सेना के इस हमले का रूस के सेंट पीटर्सबर्ग पर भारी प्रभाव पड़ा था ।इस हमले के कारण उस वक्त लाखों लोगों की जान गई थी और इस प्रभाव आने वाले कई दशकों तक देखने को मिलता रहा।
ऐसे किया गया है जर्म बम का उपयोग
जैविक हथियार. जर्म बम या बायोलॉजिकल हथियार, एक ऐसा हथियार जो बिना किसी धमाके या शोर के किसी भी देश को तबाह कर सकता है। जिस तरह किसी युद्ध में बंदूक, गोला, बारूद वाले बम का इस्तेमाल किया जाता है, उसी तरह जैविक हथियार के तौर पर बैक्टीरिया और वायरस का इस्तेमाल किया जाता है।
सरल भाषा में समझें तो जर्म ब्लास्ट वो ब्लास्ट होता है, जिसके जरिए इंसान, जानवर और पौधों में बीमारियां फैलती हैं और इन बीमारियों के कारण आम लोगों की जान जाती है। कई बार इन वायरस को पीने या सामान्य उपयोग में आने वाले पानी के स्रोत में भी मिला दिया जाता है, ऐसे में ये बैक्टीरिया पानी के रूप में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचता है। इससे लोगों की मौत तो होती ही है। आने वाली कई पीढ़ियों तक में भी इसका बुरा प्रभाव देखने को मिलता है।