Saturday, July 27, 2024
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Evening evening in chhattisgarh : चर्चा और थानेदारों का खर्चा, छत्तीसगढ़िहा अस्मिता वर्सेस वन नेशन कार्ड..फॉरेस्ट के बेकार खर्चे और सार्थक चर्चे,मंत्रालय में खामोशी, 7 मई का इंतजार…

…चर्चा और थानेदारों का खर्चा

 

अजय देवगन का एक मशहूर संवाद है काम करने का तरीका बदला है तेवर नहीं..! ये संवाद कोरबा थानेदारों पर सटीक है, फिट है यूं कहें कि सुपरहिट है। क्योंकि आचार संहिता और सरकार बदलने के बाद काम करने का तरीका तो बदले पर तेवर वही है। जी हां हम बात नदी उस पार के थानेदारों की कर रहे हैं जो चर्चा के नाम पर खर्चा निकाल रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि ऊर्जाधानी के ऊर्जावान थानेदारों का सिग्नेचर भले ही बदल सकता है पर नेचर नहीं…! तभी तो अब वे चर्चा के बहाने पब्लिक से खर्चा करा रहे हैं।

दरअसल न दलील ,न अपील सीधा कार्यवाही पर काम करने वाले कड़क कप्तान की नीति को देखते हुए थानेदार थाने में चल रही रीति-नीति के तरीके को बदल लिए हैं और अब चर्चा के नाम के नाम पर खर्चा वसूल रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक जेंटलमैन कहते हैं मेरे एक परिचित के व्यक्ति का एक मामूली सा काम था। सो मैंने थानेदार को सहजता से फोन मिलाया और उन्हें मामला निपटाने के लिए रिक्वेस्ट कर लिया।

 

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इस पर थानेदार का रटा रटाया जवाब आया, साहब से चर्चा करना पड़ेगा। इतने में फोन मिलाने  महाशय का माथा ठनका और अब तक जिले में चल रही थानेदारी को समझने का प्रयास किया तो समझ में आया अब थानेदारों का तरीका बदल गया है लेकिन तेवर वही हैं।

पहले साफ साफ थानेदार खर्चा गिनाता था और अब चर्चा के बहाने आम आदमी से खर्चा निकलवा रहा है। ठीक भी है करे भी क्या..! आखिर बड़े साहब का डर और थाने की छुटपुट जिम्मेदारी का निर्वहन करना है तो चर्चा और ख़र्चा तो करना ही पड़ेगा..!

 

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फॉरेस्ट के बेकार खर्चे और सार्थक चर्चे..

 

साल 2006 में एक मूवी आई थी जिसका गाना हिट हुआ था ” जय जय मनी…”  ठीक इसी अंदाज में  फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारी काम कर रहे हैं, और पब्लिक के पैसे से “जय जय मनी” का गाना गुनगुना रहे हैं। हम बात कोरबा डिवीजन और समुदायिक विकास के नाम पर चल रहे फिजूलखर्ची की कर रहे हैं, जहां बिना प्लानिंग के पब्लिक के पैसे को पानी की तरह बहाया जा रहा है।

खबरीलाल की माने तो फॉरेस्ट के आला अधिकारी एलिफेंट रिजर्व एरिया में 50 हजार रुपए के चबूतरे को 5 लाख रुपए में निर्माण करा रहे हैं। यही नहीं वनांचल के गांवों में निस्तारी वाले नदी, तालाबों में पचरी का निर्माण बिना टेक्नीकल टीम के करा रहे हैं। रेंजर का कहना है कि डिपार्टमेंट काम करा रहे है, पर असल में कुछ नेतानुमा ठेकेदार डिपार्टमेंट के अफसर के साथ साथ उनका हर खर्च उठा रहे हैं। लिहाजा 5 के काम को 15 में करते हुए ठेकेदार भी डिपार्टमेंट के अफसरों के साथ वन्य जीवों के लिए मिले रकम को दीमक की तरह चट कर रहे हैं।

वैसे तो जंगल के तक्षक हर विधा में पारंगत माने जाते हैं। तक्षक यानी सर्प.. सर्प जो छत्तीसगढ़ की भूमि पर विचरण कर रहा हो तब भी हिमालय में आने वाले भूकंप को पहले ही भांप जाता है। लेकिन, यहां तो वे बिना बीई और बीटेक निर्माण कार्यों का मूल्यांकन कर सरकारी धन में सेंध लगा रहे है। कहा तो यह भी जा रहा कि सांप पकड़ने की विधा सीखने के बाद भी सांप पकड़ने और वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए महकमे में कामगार रखे जाते हैं। बहरहाल बेकार खर्चा हो तो सार्थक चर्चा का विषय बनता ही है क्योंकि खर्चा और चर्चा का चोली दामन का साथ है।

छत्तीसगढ़िहा अस्मिता वर्सेस वन नेशन कार्ड…

गीतकार कांति लाल यादव का गीत ” मोर छत्तीसगढ़ के माटी “..तो हिट है ही, अब चुनावी रण में छत्तीसगढ़िहा अस्मिता भी हिट हो रही है। बात हाईप्रोफाइल सीट कोरबा लोकसभा की है। मिसेज महंत छत्तीसगढ़ की अस्मिता कार्ड से चुनावी वैतरणी पार लगाना चाहती हैं तो दूसरी तरफ सियासी पिच पर मिस सरोज वन नेशन वन कार्ड खेलकर जनता का आशीर्वाद मांग रही है।

वैसे तो कोरबा लोकसभा में छत्तीसगढ़िहा वोटरों की संख्या सर्वाधिक है। वहीं अगर बात शहरी क्षेत्रों की जाए तो औद्योगिक नगरी के लिहाज से मिनी भारत भी बसता है। इस लिहाज से कांग्रेस और भाजपा के अपने अपने तराने हैं और जीत के लिए कांग्रेसी ” मोर छत्तीसगढ़ के माटी….अन्न इहा के गुरमटीया माटी के सीख सधार हे,बजुर छाती के परसादे..। की लय में मतदाताओं का विश्वास जीतने का प्रयास कर रहे है।

तो भाजपा भी भगवा और भजन की गाथा के साथ एक देश एक कानून की पाठ पढ़ा रही है। इन सबके बीच मतदाताओं के मौन से दोनों दल के नेताओं का गणित गड़बड़ा रही है। कुल मिलाकर यह चुनाव छत्तीसगढ़ के अस्मिता और वन नेशन कार्ड पर चल पड़ी है। ये बात अलग है कि मतदाओं का मुखर न होना सभी को चौंका रहा है।

मंत्रालय में खामोशी, 7 मई का इंतजार

 

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बाद आई नई सरकार ने सत्ता संभालते ही कांग्रेसी शासन में सालों से मलाईदार विभागों में जमे अफसरों पर सुशासन का डंडा चलाया, फिर लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने पर बाकी बचे अफसरों की तबादला सूची हो गई। सुशासन का डंडा मंत्रालय स्तर पर ज्यादा चला, लिहाजा मंत्रालय में खामोशी बता रही है कि बची.खुची कसर मई के बाद पूरी हो जाएगी।

 

पिछली बार आईपीएस लाबी इस फेरबदल से बच निकली थी। कुछ जिलों को छोड़कर बाकी में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन 7 मई के बाद पुलिस मुख्यालय सहित मंत्रालय स्तर में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। इस बार इसकी चपेट में आईपीएस आने वाले हैं।

 

जो आईपीएस अभी ​बड़े जिलों की पोस्टिंग पर हैं, वे अपनी पोस्टिंग बचाने या बेहतर पाने की आस में हैं और जो लूप लाइन में हैं, वे फील्ड पोस्टिंग की उम्मीद कर रहे हैं। इस बार तबादले परफार्मेंस के आधार पर होंगे। ये लिस्ट 11 सीटों के नतीजों का नफा नुकसान देखा जारी होगी।

 

यानि जहां हार होगी वहां के कलेक्टर, एडिशनल कलेक्टर, एसपी-एडिशनल एसपी को नवा रायपुर लौटना पड़ सकता है। सभी सीटें आने पर भी जिलेवार समीक्षा होगी और रिजल्ट आशा के अनुरूप नहीं आया उन जिला प्रशासन पर गाज गिरना तय है।

 

छत्तीसगढ़ में सांय सांय

 

पांच महीने पुरानी विष्णुदेव साय सरकार ने सत्ता में आते आते ही सांय सांय काम करना शुरु कर दिया। पीएम आवास, ​धान का बकाया बोनस,महतारी वंदन योजना की राशि खाते में पहुंचाई और मोदी की गारंटी पूरी हो गई।

 

विष्णुदेव साय सरकार में सांय सांय वाले स्टाइल में डीएमएफ घोटाला, कोयला घोटाला, शराब घोटाला, पीएससी घोटाला और महादेव ऐप घोटाला की फाइल भी सांय सांय पलटनी शुरु कर हो गई।

 

पार्टीस्तर से लेकर अफसरों को टीम को इसका जिम्मा दिया गया है कि वो सांय सांय वाले स्टाइल में कम करें। ताकि पिछले पांच साल में कांग्रेस सरकार के सभी काले चिठ्ठों से धूल हटाई जा सके। अब तो सुबह सरकार की ओर सीबीआई को छत्तीसगढ़ में जांच की अनुमति मिलती और शाम को सीबीआई अफसर बिरनपुर में डेरा जमा लेते हैं एकदम सांय सांय……।

 

विष्णुदेव साय सरकार की सांय सांय वाली स्टाइल से कांग्रेसी सरकार के करीबी रहे लोगों के बंगले में खामोशी वाली सांय सांय की आवाज आने लगी हैं। जो भीड़ पहले यहां नजर आती थी वहां केवल सांय सांय की आवाज आ रही है। लोग नया ठिकाना ढुंढ़ने लगे हैं। क्या पता कब उनके यहां भी सांय सांय होने लगे।

7 मई ठीकठाक गुजर जाए तो 4 जून तक कोई सुरक्षित ठिकाना ढूढ़ना आसान हो जाएगा। कोई गड़बड़ हुई तो फिर सांय सांय ….। बाकी आप खुद समझ जाएं…।

   ✍️ अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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