अफसरों पर भारी जून जुलाई
हाल ही में भूपेश सरकार ने 6 जिलों के कलेक्टरों को बदल दिया, मंत्रालय स्तर में कई आईएएस अफसरों के प्रभार भी बदले गए ताकि प्रशासनिक कसावट आ सके। मगर ट्रांसफर लिस्ट में अभी कुछ नाम बाकी हैं, जिनका नंबर अगली लिस्ट में आना है। दर असल प्रदेश में सरकार चलाने वाले आईएएस अफसरों पर जून जुलाई का महीना हर बार भारी पड़ता है, इसकी वजह ये हैं कि विधानसभा चुनाव नवंबर माह तक होने हैं और 6 माह पहले चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद ट्रांसफर पोस्टिंग सारा कुछ चुनाव आयोग के कंट्रोल में आ जाता है।
ऐसे में सरकार अपने पसंदीदा अफसरों को हर हाल में वहां बैठा देती है जहां वो चाहती है। ऐसा छत्त्तीसगढ़ बनने के बाद से होता आया है। पूर्ववर्ती सरकार ने भी जून महीनें में अफसरों के प्रभार में बड़े फेरबदल किए थे। मंत्रालय में कुछ जिलों के कलेक्टर और आईपीएस की ट्रांसफर लिस्ट की फाइल चल पड़ी है। अनुमान है कि मई के दूसरे सप्ताह या फिर जून के पहले सप्ताह में ये लिस्ट निकल सकती है।
कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे का मैसेज और…
खाकी की छवि को फायदे के लिए धूमिल करने वाले खिलाड़ियों को कैप्टन वन्डरफुल ने कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे का मैसेज दिया है। ट्रांसफर के पिच में चौके छक्के की बरसात करते हुए अपने हिसाब से थाना चलाने वालों को सबक सीखा दिया है। मगर इस लिस्ट में कोयलांचल के एक थानेदार की चौथी बार पोस्टिंग जनमानस की चर्चा का विषय है, पर कहते है न ” घोड़ा तो हर कोई पाल सकता है लेकिन बेचता सौदागर ही है “..! तो बात काबिलियत और विश्वास की है। जिसमे दम होता वही अच्छे थाने में बैठने का हकदार भी..!
वैसे चर्चा तो इस बात की भी है कि कप्तानी पारी के ट्रांसफर पिच में जो रनों की बरसात हुई है, जिसमे अंगद की तरह पांव जमाकर बैठे हुनरमंद थानेदार भी सकते में हैं। कैप्टन ने लूज टॉक करने वालों को इस कदर धोया है कि सीधा उन्हें बाउंड्रीललाइन के समीप खड़ा कर दिया है। और तो और रायगढ़ में अपना सिक्का चलाने वाले थानेदारों को भी बाउंड्रीलाइन पर भेज कर डिपार्टमेंट के अफसरों को एक पॉजिटिव मैसेज दिया है।
तभी तो साहब ने एक दबंग टाइप के खिलाड़ी की हेकड़ी निकालते हुए उन्हें एक्स्ट्रा प्लेयर के रूप में बैठा दिया है। ओवरऑल कैप्टन के ट्रांसफर पिच पर कप्तानी पारी ने दबंग थानेदारों में खलबली मचा दी है और अब बॉस के पॉवर का मतलब खाकी के खिलाड़ियों को समझ आने लगा है।
क्योंकि अब तक जिले स्मार्टनेश पुलिस करने वाले जबांज चंदा और धंधा करते हुए खाकी की छवि को धूमिल कर चौक चौराहों में कीचड़ उछाल रहे थे ..! उन्हें अब साहब के ताकत का अंदाजा लग गया है। एक बात और एक थानेदार के ट्रांसफर पर विभाग के अधिकारी दोस्ताना फ़िल्म का ये गाना ” बने चाहे दुश्मन ज़माना हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा” गुनगुना रहे हैं।
पोस्टिंग के लिए होस्टिंग
टीचर से एचएम की पोस्टिंग के लिए होस्टिंग पर बैठे कमेटी मेम्बर की माया की चर्चा टीचरों में बवाल मचा रहा है। वैसे तो कमेटी में टीचरों के प्रतिनिधित्व करने वाले शिक्षकों को भी बैठना था लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। हां ये जरूर हुआ कि जो जवाबदार थे वो सिर्फ चेहरा दिखाकर चले गए..! तो बवाल तो बनता है ।
चर्चा इस बात की है कि गंभीर बीमारी का लाभ दिलाने औऱ हटाने के लिए डिपार्टमेंट के बिना डिग्री के अफसर डॉक्टर भी बन गए। कहा भी गया है नाव में सफर करना हो और एक से अधिक पतवार खेने वाले व क्षमता से अधिक मुसाफिर बैठे हो तो नाव का डूबना लगभग तय है। कुछ इसी तरह की दशा शिक्षा विभाग की है। विभाग की ओर से पारदर्शिता पूर्ण काउंसलिंग का भले ही ढोल पिटा जा रहा हो लेकिन, असंतुष्ट शिक्षकों ने इस ढोल की पोल नाप ली है, और इस नाप को लेकर वे कोर्ट में जाने की तैयारी में हैं।
जाए भी क्यों न जो पहले से ही दागदार थे उन्हें ही काउंसलिंग का मुखिया बनाकर शिक्षकों की पदांकन की गई जिन्हें मनचाहा जगह मिला उनकी तो बल्ले बल्ले है, लेकिन, जो पात्र होकर भी अपात्र घोषित कर दिये गए उनके लिए अब एक मात्र कोर्ट का रास्ता ही दिखाई दे रहा है। यदि यह दशा हुई तो वही बात होगी कि जहां से चलना शुरू किए थे वहीं पहुंच गए।
हालत ये है कि शिक्षा की डोरी को एक ओर से शिक्षक तो दूसरी ओर से अफसर खींच रहे हैं। टीचर भी शहर में पदस्थ रहकर नौकरी करना चाहते हैं तो आखिर गांव के बच्चों को कौन पढ़ाएगा। इस बात पर नरगिस की फ़िल्म का ये गाना फिट बैठता है “अगर होती चमन दुनिया , तो वीराने कहां जाते”…!
नेताजी की मीठी मुस्कान फीका पकवान..
शहर के एक खद्दरधारी नेता पर ये पंक्ति खूब फबती है “ये नेता बड़े बेशर्म हैं,सेंक लेते हैं राजनीतिक रोटियां जब देखे तवा गर्म है” दरसअल हम बात नेता कम कारोबारी ज्यादा नेता की कर रहे है। स्थिति तो यह है कि वे चुनाव तो अपने वार्ड को छोड़कर दूसरे के वार्ड से लड़ते है क्योंकि उहमें खुद के वार्ड से चुनाव लड़कर जीतने का माद्दा नहीं है या कहे पब्लिक का उन पर कितना विश्वास है ये वे अच्छे से समझते हैं।
उनके वार्ड और नगर के औद्योगिक उपक्रम से निकले वाला केमिकलयुक्त विषैले पानी पर जो जीवनदायिनी हसदेव को दूषित कर रही है ये उन्हें नजर नहीं आता है क्योंकि कम्पनी विचार उन्हें बहुत भाता है। तभी तो अपने वार्ड को छोड़कर वार्ड नम्बर-15 के पानी को प्रमाणित करने पहुंच जाते हैं और मेयर के कामो पर प्रश्न चिन्ह लगाते है।
मतलब नेता जी सिर्फ धंधे चमकाने के लिए राजनीति का चोला पहनते हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि नेता जी के वार्ड के लोग ही लगातार प्रदूषण की मार झेल रहे हैं पर उन्हें जनता के सुख-दुख से कोई सरोकार नही है क्योंकि औद्योगिक उपक्रम विरोध न करने का भी बीड़ा उन्होंने उठाकर रखा है, ऐसे विषय पर बिलकुल बालको की तरह मासूम बन जाते हैं। जिसकी वजह एक बड़ी डील की बात चर्चा में है। वैसे नेता जी बड़े सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं उनकी मीठी मुस्कान फीका पकवान..के पीछे भी बड़ा राज है।
भाजपा के नंदलाल रूठ गयो रे……
सूबे में भाजपा के सीनियर आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष अरुण साव को भेजकर बीजेपी को परेशानी में डाल दिया है। नंदकुमार साय का इस्तीफा चुनाव से पहले पार्टी लीडरशिप के लिए एक बड़ा झटका है। उनके इस्तीफा का मजमून ही कुछ ऐसा है कि पार्टी को कोई जबाव ही नहीं सूझ रहा है। हालांकि पार्टीस्तर पर उन्हें मनाने के प्रयास किए जा रहे हैं मगर लगता नहीं कि वो मान जाएंगे। इससे पहले भी नंदकुमार साय कई बार पार्टी में अपनी अनदेखी की बात उठा चुके हैं। मगर इस बार ठीक चुनाव से पहले पार्टी से उनकी नाराजगी सामने आई जो बीजेपी को भारी पड़ सकती है।
गौर करें पिछले चुनाव से पहले पार्टी के प्रदेश नेतृत्व पर अपनी अनदेखी का आरोप लगाकर पूर्व सांसद करुणा शुक्ला ने इस्तीफा देकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया था, इस बार नंदकुमार साय की नाराजगी सामने आई है। अगर वो भी करुणा शुक्ला की तरह……..बीजेपी की परेशानी और बढ़ जाएगी। और कांग्रेस को बैठे बैठाए बीजेपी पर आदिवासी नेतृत्व की अनदेखी करने का मुद्दा हाथ लग जाएगा।