Saturday, April 20, 2024
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Korba : आखिर बेनतीजा ही थम गई पंचायत सचिवों की हड़ताल, 57 बाद आंदोलन से वापसी

0 अफवाह यह भी कि कहीं कार्यवाही का चाबुक न चले, इस संभावना के मद्देनजर संघ ने लिया निर्णय

कोरबा। सरकारी कर्मी का दर्जा दिए जाने की एकसूत्रीय मांग को लेकर पिछले 57 दिनों से चल रही पंचायत सचिवों की हड़ताल आखिर थम गई। बेनतीजा रहे आंदोलन का आधार सीएम से मिले आश्वासन को बताया जा रहा है। चुनावी साल में दफ्तर का काम-काज और योजनाओं का क्रियान्वयप ठप हो जाने से नाराज सरकार कार्यवाही का चाबुक चलाने की तैयारी कर रही थी। अफवाह यह भी है कि यह अंदेशा कहीं सच साबित न हो जाए, यही भांपते हुए आंदोलन समाप्ति का निर्णय लिया गया है। कारण जो भी हो, पर अब सचिव सोच में हैं कि आखिर इस आंदोलन में उन्होंने क्या हासिल किया।

सचिवों की पिछले 57 दिन से चल रहे आंदोलन को बिना मांग पूरा किए मंगलवार को समाप्त कर दिया गया। लगभग दो महीनों तक चले इस असफल आंदोलन के बाद अब सचिव विचार-मंथन कर सोच में पड़ गए हैं। इस उधेड़-बुन में वे एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि आखिर उन्होंने आंदोलन की राह पर चलकर क्या खोया-क्या पाया? उल्लेखनीय होगा कि सचिव संघ के प्रदेश नेतृत्व के आह्वान पर एक सूत्रीय मांग को लेकर प्रदेश भर के सचिव हड़ताल पर चले गए थे। आंदोलन करने वाले पंचायत सचिव अपनी परिवीक्षा अवधि के बाद नियमितीकरण की मांग करते हुए हड़ताल पर बैठ गए थे। परिणामस्वरूप पंचायतों का काम काज पूरी तरह से प्रभावित थे। सूत्र बताते हैं, कि सरकार सचिवों पर कड़े और बड़े निर्णय की तैयारी में थी। जिसे भांपते हुए सचिव संघ ने हड़ताल को स्थगित करने का निर्णय लिया। इस तरह सीएम से आश्वासन की बात कहते हुए आंदोलन को स्थागित कर दिया गया।

छग में 10 हजार से ज्यादा सचिव, इंजीनियरों को देनी पड़ी थी जिम्मेदारी

ग्राम पंचायत सचिवों के हड़ताल में चले जाने से पंचायत अंतर्गत होने वाले सभी प्रकार के कार्य ठप हो गए थे। इसमें गोबर खरीदी कार्य, जन्म मृत्यु पंजीयन, पेंशन भुगतान, राशन कार्ड, निर्माण कार्य एवं अनेक हितग्राही मूलक कार्य रुक गए। पंचायत सचिवों का कहना था कि दो साल की परिवीक्षा अवधि के बाद शासकीयकरण किया जाए। अन्य कर्मचारियों को मिल रहे लाभ जैसे पुरानी पेंशन, क्रमोन्नाति, ग्रेच्युटी वह सब उन्हें भी मिलना चाहिए। प्रदेश में 27 सालों से 10 हजार से भी अधिक पंचायत सचिव अपनी सेवाएं दे रहे हैं। पंचायत सचिव का काम करने से इंजीनियर और अधिकारियों ने एतराज जताया था। दूसरी ओर सचिवों का आंदोलन तेज होने से शासन प्रशासन की चिंताएं बढ़ने लगी थी।

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