अफसरों का चैट ,कोल स्कैम के माफियाओं का हो रहा वेट
कोल स्कैम में शामिल लोगों का हौसला भले ही पस्त न हुआ हो, लेकिन गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है। ईडी की चार्जशीट में पुलिस के एक बड़े अफसर के वाट्सअप चैट में शहर के कोल कारोबारियों के जिक्र से उनका वैट बढ़ गया है। बताते चले कि ये उन दिनों की बात है जब कोल ट्रांसपोर्टिंग का काला धंधा पूरे शबाब पर था।
इसी दौरान बिलासपुर पुलिस ने अवैध कोयला परिवहन करते कुछ वाहनों को पकड़ा था। पकड़े गए वाहन के मालिकों को पकड़ने बिलासपुर पुलिस कोरबा भी आई, लेकिन तत्कालीन कप्तान के इशारे पर उल्टा बिलासपुर पुलिस पर कार्रवाई की हिदायत दे डाली थी। मामला हाई प्रोफाइल होने की वजह से कोयला के कलाकारों का मामला रफा दफा किया गया।
अब जब ईडी ने अफसरों का बयान कलमबद्ध किया तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। ईडी के चार्जशीट में एक अफसर का वाट्सअप चैट में अंदर की बात का खुलासा हो गया। सूत्र बताते हैं कि पुलिस अफसर चैट में नदी उस पार के खदान का काम संभालने वाले सिंह साहब, एनएसयूआई के एक युवा नेता और शहर के काले हीरे की जौहरी के नाम का जिक्र है। शहर के कम दिन में ज्यादा दौलत कमाने वालो के नाम का जिक्र होने के बाद लोग चुटकी लेते हुए चर्चा कर रहे हैं “बुरे काम का बुरा नतीजा क्यों भाई चाचा हां भतीजे” ।
मेहनत करे मुर्गी और अंडा खाए…
संभाग में एक नदी उस पार के साहब को बेहतर पुलिसिंग के लिए सम्मान क्या मिला लोग कहने लगे मेहनत करे मुर्गी और अंडा …! ठीक भी है क्योंकि आज का अपराध पूरी तरह से टेक्निकल से जुड़ा है। सो साफ्टवेयर के जानकार पुलिस अफसर ही क्रिमिनलों की कुंडली खंगाल रहे हैं। ऐसे में साइबर सेल को इनाम न देकर किसी को सम्मानित करना मतलब काम करने वालों को मॉरल डाउन करना है।
महकमें के अंदरखाने में चल रही चर्चा की माने तो सब ऊपर वाले की माया है। जिसके सर पर बड़े लोगों का आशीर्वाद हो वो तो बिना लड़े ही विनर बन जाता है तो बेहतर पुलिसिंग का सम्मान कौन खेत की मूली है। वैसे लंबे अर्से में यह पहली मर्तबा है जब गैर सायबर सेल वाले साहब की पीठ को थपथपाया गया है।
लिहाजा इनाम की आस लगाने वाले अफसरों में जलस तो बनता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि सायबर के कुछ जाबांज गैर जिला भी जाकर टैक्स वसूल रहे हैं वो भी बिना उच्च अधिकारियों की अनुमति के।
वैसे पुलिस महकमे के अधिकारी ही आपस मे चर्चा करने लगे हैं कि जिले में सेनापति बदलते ही खाकी के शेर बहादुरों का इनाम भी बदल गया। खैर सब समय का खेल है। किसी दौर में जिनका विभाग में था राज, आज वो बड़े थाने जाने के लिए बेताब हैं। कहा भी गया है समय होत बलवान। लिहाजा समय का पहिया घुमा और इनाम पहुंच गया नदी उस पार!
गुमनाम है कोई, बदनाम है कोई…
मनोज कुमार की फ़िल्म गुमनाम का वो गाना आपने सुना ही होगा। गुमनाम है कोई बदनाम है कोई.. किसको खबर कौन है वो अनजान है कोई…! राजस्व अमले के पटवारियों पर ये गाना सटीक बैठ रहा है। दरअसल दफ्तर से सील चोरी होने पर किसी गुमनाम प्रॉपर्टी डीलर ने जमीन की चौहद्दी में सील सिग्नेचर कर बिक्री कर दिया और पटवारी बदनाम है। बात यहीं तक नहीं रुकती…कमाल तो ये है कि फर्जी दस्तावेज के सहारे जमीन रजिस्ट्री करने वाले रजिस्ट्रार भी अनजान हैं।
जमीन के जानकारों की माने तो जमीन के मालिक जमींदार और रिकार्ड के रखवाले चौकीदार मिलकर मलाई काट रहे हैं। मामला शहर के पाश एरिया के एक जमीन के फर्जी दस्तावेज का है। करोड़ों की जमीन देख एक राशन दुकान वाले की नीयत डोल गई और उसे फर्जी दस्तावेज बनाकर बेच दिया। कहा भी तो गया है ” जैसा देश वैसा भेष “ तो करप्ट सिस्टम से तालमेल बैठाकर जमीन कहीं और की और खसरा कहीं और का… को सेट कर बिक्री कर दिए।
अब बात अगर लैंड रिकार्ड के रखवाले चौकीदार की करें तो ये महाशय भी कम नही है। तभी तो 3 को चौहद्दी बन जाता है और साहब 22 को सील चोरी होने को शिकायत अपने उच्च अधिकारियों को करते हैं। यही नहीं 23 जनवरी को जमीन की रजिस्ट्री भी हो जाती है। मतबल साफ है चोर चोर मौसेरे भाई…!
...तब संतरी भी मंत्री से अधिक बलवान