चाय से ज्यादा केतली गरम, ASI रच रहे भरम
कहावत है कि चाय से ज्यादा केतली गरम हो जाती है। यह कहावत इन दिनों जिले के एक थाना के एएसआई पर फिट बैठ रही है। थानेदार साहब की पोस्टिंग के बाद लूप लाइन में दिन काट रहे सहायक उपनिरीक्षक के दिन फिर गए हैं। वैसे भी साहेब थाने की लाल डायरी को लंबे समय से सहेजते रहे हैं तो लाल डायरी की कमांड मिलते ही पब्लिक से उलटा पुल्टा डिमांड करने में लगे हैं। डिमांड और रुआब की आंच से झुलसती पब्लिक कह रही है “चाय से ज्यादा तो केतली गरम है.! ”
ये बात भी सच है कि जनाब के पुलिसिया डंडे की धमक सिक्कों की खनक के आगे नतमस्तक हो जाती है। एएसआई के बदले अवतार से उनके करीबी भी हैरान है। सूत्र बताते हैं कि जब से वे लाल डायरी को संभाल रहे हैं तब से थाने का नजराने का सेंसेक्स ग्राफ लगातार बढ़ ही रहा है।
शहर के हृदय स्थल में चल रहे पुलिसिंग कम डिमांड ज्यादा से परेशान पब्लिक को लग रहा है थानेदार पर तो एएसआई भारी हैं। थाना क्षेत्र में चल रहे डिमांड से नए नवेले थानेदार साहब की इमेज धूमिल हो रही है। जिस अंदाज में थाना क्षेत्र में पुलिसिंग की जा रही है उससे क्षेत्र की जनता के मन मे खाकी के प्रति आक्रोश उपजता जा रहा है।
4 करोड़ के लिए थप्पड़ की गूंज
शहर के पॉस एरिया में 4 करोड़ की जमीन के लिए हुए थप्पड़ कांड की गूंज नगर में धूम मचा रही है। उड़ती खबर पर एक से बढ़कर एक तर्क देते हुए चटखारे लगाये जा रहे हैं।
गूंज शारदा विहार के एक चार करोड़ी जमीन को लेकर है। पूर्ववर्ती सरकार में जमीन का कारोबार करने वाले प्रॉपर्टी डीलरों ने जमीन को सेट किया था। समय के साथ दोनों की आपस मे बनी नहीं ,फिर क्या था… अवसर की तलाश कर रहे युवा तुर्क ने सरकार बदलते ही मौका पाकर चौका मारते हुए थप्पड़ जड़ दिया।
थप्पड़ कांड से आहत प्रॉपर्टी डीलर जब सिविल लाइन थाना रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचे तो शिकायत दर्ज करने से इंकार कर दिया गया। आखिर सत्ता पक्ष का दबाव जो था। सुबह होते ही घटना आग की तरह शहर में फैल गई और चौक चौराहों में थप्पड़ कांड की बहस छिड़ गई है।
शहर के पंडितों ने तो पुरानी बातें “जर जोरू और जमीन के लिए सब जायज है” को दोहराते हुए लोगों को समझाने का प्रयास किया, तो कुछ ने कहा कि सरकार बदलने के बाद अभी तो ये शुरुआत है आगे आगे देखिए होता है क्या..! जो भी पर शहर में हुए थप्पड़ कांड की गूंज अब प्रदेश में सुनाई देने वाली है।
सत्ता का मोह लागी छूटे न
किसी चीज की लत लग जाती है तो वह आसानी से छूटती नहीं है। ये पंक्तियां सत्ता सुख भोगने वाले नेताओं पर सटीक बैठती है। अब ऊर्जाधानी को ही देखिए.. सत्ता पलटते ही कल तक जिसके आगे पीछे घूमते थे और जिसका चेहरा देखना पसंद नही करते थे, वे भी नए वजीर के दाएं बाए होने के लिए जुट गए हैं।
वो भी मौका मिलते ही चेहरा दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं। कहा भी तो गया है जो दिखता है वो बिकता है सो दुकानदारी तो चलानी है तो चेहरा चमकना पड़ेगा ही, और वजीर को भी इंतजाम अली तो चाहिए और ऐसे लोग हर इंतजाम करने में माहिर हैं। जन से लेकर धन तक जुटाने की कूबत रखते है। फिर वजीर मेहरबान क्यों न हो..!
चन्ना मुर्रा खाकर चुनाव जीतने वाले नेता कल तक उनके खास थे आज उनकी अहमियत फिर दरी उठाने तक सीमित कर दी गई है। और ज्यादा हुआ तो माला पहनाकर अपने कर्तब्य की इतिश्री कर हमारा नेता जिंदाबाद….! करते नजर आ रहे है।
हार के बाद जीत
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव की खुमारी चढ़ने लगी है। पहले कांग्रेस में हारजीत और निपटने निपटाने के आरोप को लेकर सिर फुटव्वल मची और अब बीजेपी में चुनाव हारे हुए नेताओं से पूछ जा रहा है कि किन कारणों से वे चुनाव नहीं जीत पाएं….यानि बीजेपी को विधानसभा की जिन सीटों पर हार मिली वहां भी जीत की तलाश है। लोकसभा की पूरी 11 सीटों पर मंथन किया जा रहा है।
बीजेपी के संगठन नेता और केंद्र से आए रणनीतिकार लोकसभा चुनाव में कोई चूक बाकी नहीं रखना नहीं चाहते…साथ ही हार का कारण पूछकर उन नेताओं के घांव पर मरहम भी लगा रहे हैं जो इन दिनों पार्टी से नाराज चल रहे हैं। कांग्रेस भी कुछ ऐसे ही रास्ते पर चल रही है।
छत्तीसगढ़ के दो बड़े नेता को दिल्ली में पार्टीस्तर पर बड़ी जिम्मेदारी दे गई है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल को गठबंधन समिति में शामिल किया गया है तो टीएस सिंहदेव घोषणा पत्र समिति के राष्ट्रीय संयोजक बनाकर ये संदेश दिया जा चुका है कि उनके पास अभी भी अपने को साबित करने का मौका है। अगर लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन आशा के अनुरूप रहा तो उन्हें आगे बड़ा मौका मिल सकता है। लिहाजा दोनों की दल हार के बाद जीत की तलाश में लगे हैं।
Transfer and complaint तबादला और शिकायत
छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद मंत्रालय स्तर हुए थोक तबादले होने की उम्मीद तो ब्यूरोक्रेसी को भी थी, मगर जिस तरह से सूची जारी हुई उसकी उम्मीद अफसरों को भी नहीं थी। एक साथ 87 आईएएस और एक आईपीए के तबादले कर दिए गए। इससे नेताओं के उन अफसरों की उम्मीदों पर पानी फिर गया जो नई सरकार में अच्छी पोस्टिंग के लिए नई सरकार की परिक्रमा कर रहे थे।
हालांकि सूची जारी होने के बाद अफसरशाही में सतही तौर पर चुप्पी रही मगर पार्टी स्तर इस शिकायत पीएमओ तक जरूर पहुंच गई। हालांकि पीएम मोदी इसके लिए नई सरकार के मुखिया को अपने स्तर पर समझाइश देकर वहीं खत्म कर दिया मगर से इशारों में इशारों में यह भी कह दिया कि अफसर किसी पार्टी के नहीं होते। नेताओं का काम पॉलिसी बनाना है और अधिकारियों का काम उसे लागू करना है। इसलिए अधिकारियों से अच्छा व्यवहार किया जाए।
यानि केवल अफसरशाही के बूते योजनाओं को जमीन पर लागू करने से सरकार को बचना चाहिए। पार्टी संगठन, सरकार के मंत्री और नेताओं को भी इसकी जिम्मेदारी उठानी होगी जो सरकारी मशीनरी से तालमेल के बिना हो पाना जरा मुश्किल होगा।