बिलासपुर- 10 रुपए किलो भी मिल जाए तो बहुत होगा। यह कहना है उस खैरागढ़ और डोंगरगढ़ का, जो दो बरस से बंद निर्यात के खुलने की राह देख रहा है। आसार अच्छे नहीं दिखाई देते क्योंकि बांग्लादेश ने आयात के अपने द्वार नहीं खोले हैं।
छत्तीसगढ़ का वनोपज कारोबार अभी भी पटरी पर लौट नहीं पाया है। खासकर चरौटा और बेर का निर्यात जिस तरह बंद है, उसके बाद इन दोनों के काम से जुड़े ग्रामीण, गंभीर आर्थिक संकट में आ चुके हैं। पहले चरौटा, अब बारी है बेर की, जिसकी फसल ने दस्तक दे दी है। बेसब्री से प्रतीक्षा है मांग की क्योंकि फसल की स्थिति अच्छी बताई जा रही है।
प्रतीक्षा दो बरस से
महामारी के दौर में बंद निर्यात का द्वार अभी भी नहीं खोला जा सका है। अब तीसरा बरस आ चुका है। आसार जैसे बने हुए हैं, उसे अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है। छत्तीसगढ़ के निर्यातकों ने विदेश व्यापार मंत्रालय से संपर्क बनाया हुआ है लेकिन सकारात्मक परिणाम मिला नहीं है।
चौतरफा संकट
दो बरस से निर्यात बंद। कोल्ड स्टोर में रखी फसल। घरेलू बाजार से उपभोक्ता मांग का नहीं होना और तैयार होती फसल। यह चार प्रमुख कारक जैसे हैं, उससे छत्तीसगढ़ के बेर किसान और संग्रहणकर्ता परेशान हो चुके हैं। दूसरी तरफ निर्यातकों के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो चुका है।
बनती है यह सामग्री
छत्तीसगढ़ से बांग्लादेश निर्यात किए जाने वाले बेर से अचार बनता है। गुणवत्ता के दम पर खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के बेर प्राथमिकता के आधार पर खरीदे जाते हैं। फसल की स्थिति देखने के बाद मध्य जनवरी में होने वाला एडवांस सौदा दो साल से बंद है। इसलिए 10 रुपए किलो का भाव भी सही माना जा रहा है। अनुकूल स्थितियों में 12 से 14 रुपए किलो मिलते रहे हैं।
प्रतीक्षा निर्यात ऑर्डर की
महामारी के दौर से बंद निर्यात का द्वार अभी तक नहीं खुला है। कोल्ड स्टोर में रखी फसल, घरेलू मांग का नहीं होना और नई फसल को देखते हुए आशंका तीसरे बरस भी नुकसान की ही है।
– सुभाष अग्रवाल, एसपी इंडस्ट्रीज, रायपुर