CRPF Warrior : जिसके नाम पर है 100 एनकाउंटर, 500 नक्सली धरे, छाती पर शौर्य चक्र सहित 6 PMG और एक PPMG…जानें

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नई दिल्ली। CRPF Warrior : सीआरपीएफ का एक ऐसा योद्धा, जिसके नाम से बड़े-बड़े नक्सली कमांडर कांप उठते थे। जिस योद्धा ने अपनी सेवा के दो दशक नक्सलियों के खिलाफ चले ऑपरेशन में गुजार दिए। इस अवधि में उन्होंने या उनकी टीम में लगभग 500 नक्सलियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। उनके नेतृत्व में सौ से अधिक एनकाउंटर हुए हैं। पांच से पंद्रह लाख रुपये तक के इनामी कई नक्सली उन्होंने दबोचे हैं या मार डाले हैं।

2012 में उन्हें लगी थीं पांच गोलियां

2012 में उन्हें एक नक्सली ऑपरेशन में पांच गोलियां लगी थीं। चंद महीनों में ठीक होकर वे दोबारा से नक्सलियों को उनकी मांद में ललकारने पहुंच गए। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीआरपीएफ के सेकंड-इन-कमांड, प्रकाश रंजन मिश्रा को गणतंत्र दिवस पर वीरता के पुलिस पदक से अलंकृत करने की घोषणा की है। इससे पहले उन्हें एक शौर्य चक्र, एक वीरता के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक (पीपीएमजी) और पांच वीरता के लिए पुलिस पदक (पीएमजी) से सम्मानित किया जा चुका है।

प्रकाश मिश्रा (CRPF Warrior) को 2013 में शौर्य चक्र मिला था। सितंबर 2012 में उन्हें एक ऑपरेशन में पांच गोली लगी थीं। हालांकि इससे पहले वे अनेक दुर्दांत नक्सलियों का ख़ात्मा कर चुके थे। साल 2012 में उन्हें वीरता के लिए राष्ट्रपति के पुलिस पदक से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें जुलाई 2008 में एक ऐसे मुश्किल ऑपरेशन के लिया प्रदान किया गया था, जिसमें वे पांच जवानों को साथ लेकर 150 नक्सलियों के झुंड पर टूट पड़े थे। पहला पीएमजी इन्हें 2009 में मिला था।

दूसरा 2011 में, तीसरा भी 2011 में, चौथा 2013 में, पांचवां 2015 में और 2023 में छठा पीएमजी देने की घोषणा हुई है। 2015 में उन्होंने खूंटी (झारखंड) में एक ऑपरेशन के दौरान नक्सलियों के बड़े कमांडर को मार गिराया था। 2013 में उन्होंने चतरा में नक्सलियों के रीजनल कमांडर, जिस पर सात लाख रुपये का इनाम था, उसे मुठभेड़ में मार दिया था। 2020 में भी प्रकाश मिश्रा ने 15 लाख रुपये के इनामी रीजनल कमांडर को मारा था।

इस ऑपरेशन के लिए मिला छठा पदक

झारखंड के धुर नक्सल प्रभावित इलाके, खूंटी जिले के कोयोंगसर और कुम्हारडीह वन क्षेत्र में 20 दिसंबर 20 को, नक्सलियों की मौजूदगी का इनपुट मिला था। बिना किसी देरी के सीआरपीएफ की 94 बटालियन की एक टीम ने राज्य पुलिस को साथ लेकर ऑपरेशन शुरू किया। लक्षित क्षेत्र को हिट करने के लिए सीआरपीएफ की 3 स्ट्राइक टीमों का गठन किया गया था।

सीआरपीएफ के ‘सेकंड-इन-कमांड’ प्रकाश रंजन मिश्रा, जिनके नाम से नक्सली थर-थर कांपते हैं, उन्होंने इस ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी संभाली। उनके साथ सहायक कमांडेंट प्रहलाद सहाय चौधरी भी थे। 25 जवानों के दस्ते को नक्सलियों के मुख्य क्षेत्र पर हमला करने का काम सौंपा गया था। स्ट्राइक 2 टीम को लक्षित क्षेत्र के चारों ओर कट-ऑफ लगाने का निर्देश दिया गया। स्ट्राइक 3 को एक सामरिक बिंदु पर रिजर्व में रखा गया था।

सीआरपीएफ की 94वीं बटालियन के हेडक्वॉर्टर में इस ऑपरेशन को लेकर विस्तृत ब्रीफिंग हुई। 20 दिसंबर 2020 को घने अंधेरे में रात सवा आठ बजे तीनों टीमें एक सिविल ट्रक में सवार हो गई। तय स्थल पर ट्रक से उतरने के बाद दो स्ट्राइक टीमें, घने अंधेरे में पैदल आगे बढ़ीं। वह क्षेत्र पहाड़ियों, घनी वनस्पतियों, गहरे नालों और फिसलन वाली चट्टानों से भरा हुआ था।

इन सभी बाधाओं से जूझते हुए दोनों स्ट्राइक टीम, सुबह होने से पहले ही अपने लक्ष्य बिंदुओं के समीप पहुंच गई थीं। प्रकाश रंजन मिश्रा, टूआईसी, जिनका नक्सल क्षेत्रों में जबरदस्त इंटेलिजेंस नेटवर्क है, वे अतिरिक्त अपडेट प्राप्त करने के लिए, विभाग की खुफिया टीम के साथ लगातार संपर्क में थे। गहरे जंगल में जब वे अपने लक्ष्य के निकट पहुंचे, तो उन्हें कोयोंगसर वन क्षेत्र में नक्सलियों के मौजूद होने की पुष्टि हुई। स्ट्राइक वन टीम अपने लक्ष्य क्षेत्र की ओर बढ़ी। स्ट्राइक 2 टीम को कुम्हारडीह के पास कट ऑफ करने के लिए आगे बढ़ाया गया।

सामरिक रूप से लाभप्रद स्थिति में थे नक्सली

नक्सली ऊंचाई पर थे और वे एक गहरे नाले के किनारे पर छिपे थे। जवानों को उन तक पहुंचने के लिए नाला पार करना था। यह एक जोखिम भरा टास्क था। चूंकि नक्सली सामरिक रूप से लाभप्रद स्थिति में थे, इसलिए सीआरपीएफ टीम को बहुत संभलकर आगे बढ़ना था। तमाम बाधाओं के बावजूद, स्ट्राइक वन टीम के कमांडर ने यहां पर डटे रहने का फैसला किया।

इलाके में चारों तरफ से घेरा डालने, सर्च ऑपरेशन और आपसी सहयोग बढ़ाने के मकसद से प्रकाश रंजन मिश्रा ने स्ट्राइक वन टीम को 3 उप-टीमों में विभाजित कर दिया। एक उप-टीम ने बाएं फ्लैंक से, दूसरी ने दाएं फ्लैंक से चलना शुरू किया। तीसरी उप-टीम में सिपाही राजू कुमार, योगेंद्र कुमार, एसी प्रहलाद सहाय चौधरी और टू-आईसी पीआर मिश्रा और सिपाही सुशील कुमार चेची, सीधे अपने लक्ष्य की ओर बढ़े चले।

नक्सलियों ने जब जवानों पर फायरिंग की

जब यह दस्ता शीर्ष पर पहुंचने वाला था, तो उन्होंने कुछ दूरी पर चट्टानों के पीछे हलचल देखी। पार्टी कमांडर को तुरंत यह सूचना दी गई। इसके बाद टीम ने दबे कदमों से संदिग्ध गतिविधि की ओर बढ़ना शुरू किया। जब वे अपने लक्ष्य से 10-15 गज की दूरी पर थे तो नक्सलियों ने जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी। भारी जोखिम के बावजूद, सीआरपीएफ टीम पूरे जोश के साथ वहीं पर डटी रही। जवानों ने जवाबी कार्रवाई की। नक्सलियों से जीवन के लिए अत्यधिक खतरे और लगातार गोलाबारी के बीच, प्रकाश रंजन मिश्रा और प्रहलाद सहाय चौधरी अपने मुट्ठी भर जवानों के साथ नक्सलियों की ओर रेंगते हुए चलने लगे। थोड़ी देर बाद इन दोनों कमांडरों ने सिपाही राजू कुमार, योगेंद्र कुमार और सुशील कुमार चेची के साथ नक्सलियों पर सामने से हमला कर दिया।

नक्सलियों के पांव उखड़ गए

करीब 40-45 मिनट तक दोनों पक्षों के बीच जमकर गोलीबारी हुई। सीआरपीएफ टीम ने जिस रणनीति के साथ हमला बोला, उससे नक्सलियों के पांव उखड़ गए। वे अपना अहम ठिकाना छोड़कर पीछे भागने के लिए मजबूर हो गए। बल के योद्धाओं की सामरिक रणनीति, नक्सलियों को समझ नहीं आई। वे सामरिक फायदे वाली स्थिति में होने के बावजूद सीआरपीएफ के हमले से बच नहीं पाए। मुठभेड़ के बाद जब आसपास के क्षेत्र में सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ, तो वहां एक कट्टर नक्सली, जिदान गुरिया का शव, एक एके 47 राइफल, मैगजीन और गोला-बारूद बरामद किया गया।

मारा गया नक्सली पीएलएफआई की क्षेत्रीय समिति का सदस्य था। उस पर 15  लाख रुपये का इनाम था। उसके खिलाफ झारखंड के अलग-अलग थानों में 152 मामले दर्ज थे। वह पिछले 20 वर्षों से राज्य के लिए एक अभिशाप बना हुआ था। वह अनेक मुठभेड़ों और सीआरपीएफ व पुलिस के खिलाफ आईईडी हमलों (CRPF Warrior) के कई मामलों में वांछित था।