बिलासपुर- बारिश की गति आगे भी ऐसी ही बनी रही, तो चरौटा की नई फसल एक माह विलंब से आएगी। इससे भी बड़ा खतरा दानों में दाग लगने का मंडरा रहा है क्योंकि फलियां लगने लगीं हैं।याने दोहरे नुकसान की आशंका बनती नजर आ रही है।
महामारी के दौर के बाद स्थितियां सामान्य होती नजर आ रही थी।मानसून ने भी खूब साथ दिया। मैदानी क्षेत्रों में तैयार होते चरौटा के पौधों में फलियां लगने लगी हैं, तो पहाड़ी क्षेत्रों के चरौटा के पौधों में पुष्पन की अवधि बीतने को है लेकिन हो रही बारिश से मैदानी क्षेत्र के चरौटा संग्राहकों के सामने बड़ी चिंता यह है कि दानों में दाग लगने की समस्या से कैसे निजात मिल पाएगी ? फिलहाल उपाय नही सूझ रहे हैं।
दोहरा संकट
विदा लेता मानसून जिस तरह अभी भी बरस रहा है, उससे तैयार होती चरौटा की फसल को बेतरह नुकसान पहुंचने का अंदेशा है। दाने काले होंगे तो भाव नही मिलेगा।बहुत संभव है कि खरीदी से ही इंकार कर दिया जाए। इसके अलावा दूसरा संकट,पहुंच मार्गों का विलंब से खुलने के रूप में सामने आ सकता है।दोनों ही स्थितियां गंभीर आर्थिक नुकसान की वजह बनने जा रहीं हैंं।
निर्यात अभी भी बंद
जापान, ताईवान, मलेशिया और चीन ने भारतीय चरौटा के लिए अभी तक अपने द्वार नही खोले हैंं। महामारी के समय से बंद निर्यात की स्थितियां भी संकट की बड़ी वजह बन चुकी हैं।घरेलू बाजार वैसे भी केवल जरूरत के समय ही खरीदारी करता है। मात्रा भी इतनी कम होती है कि उसे पर्याप्त नही माना जाता है।
ठहरी हुई है कीमत
ग्रीष्म ऋतु के मौसम में 2700 से 2800 रुपए क्विंटल पर बिकने वाला चरौटा, अब भी इसी कीमत पर ही स्थिर है। तेजी की जरा भी संभावना नहीं है क्योंकि एक्सपोर्ट बंद है, तो घरेलू मांग भी ज्यादा नहीं है। लिहाजा गरियाबंद, मैनपुर, बस्तर, रायगढ़ और सरगुजा जैसे बड़े उत्पादक क्षेत्र के संग्राहक रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
दानों में दाग
बारिश की स्थितियांं ऐसे ही बनी रही तो दानों में दाग लग जाएंगे। इससे कीमत में कमी आएगी। निर्यातक देशों से भी मांग नहीं है इसलिए बाजार स्थिर है।
– सुभाष अग्रवाल, संचालक, एसपी इंडस्ट्रीज, रायपुर
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