शहर में जिनका था “रा ज” ,बंद गुफा के दरवाजा..साहेब का नया चलन ,कार में लाश और 35 टुकड़े…आरक्षण पर 

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शहर में था जिनका “रा.ज ” वो हो गए नाराज..

जिनका शहर में था रा.ज वो तबादला सूची के बाद नाराज नजर आ रहे हैं। बात पुलिस महकमे के एक दो स्टार की है। जिनका पिछले दो सालों से शहर के हर छोटे बड़े वैध अवैध कार्यों में राज रहा है। ऐसे अफसर का जब तबादला सड़क जाम को क्लियर कराने वाली जगह पर हो तो नाराज होना लाजमी है, पर क्या करें साहब का फरमान को न भी नहीं कर सकते।

सो बेमन से ड्यूटी ज्वाइन कर जिलेभर के थाना चौकियों के घटनाक्रम का मैसेंजर का काम कर मन बहला रहे हैं। वैसे कोल माइंस वाले एक साहब का भी ड्यूटी में मन नहीं लग रहा है, लगे भी कैसे जिसका कोयलांचल में रा ज था उसे एक झटके में पुलिस सहायता केंद्र में बैठा दिया गया तो नाराज होना तो बनता है।

हाल में हुए ट्रांसफर में लाइन में तैनात थ्री स्टार अफसरों की पोस्टिंग तो की गई पर उन्हें भी साहब ने जंगल का सैर करा दिया। अब तो जंगल में मन तो लगाना पड़ेगा, पर कैसे? वैसे इस तबादले से महकमा के अफसर भले ही खुश न हो पर पब्लिक बड़े साहब के काम और सोच की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।

बंद गुफा के दरवाजा खोलने शिक्षक छोड़ रहे दौलत का शिगुफा

कहा जाता है कि ” जहाँ सच न चले वहां झूठ सही, जहां हक न चले वहां लूट सही” ये गाना शिक्षा विभाग के पदोन्नति पर फिट बैठती है। बहरहाल कहानी का माद्दा यह है कि 1145 प्रधान पाठक पद के लिए योग्यता होने के बाद भी शिक्षकों ने अधिकारियों को खूब नजराना चढ़ाया। खैर जब देने वाला हंसी खुशी से दे रहा है तो लेने वाले को भी लेने में कोई हर्ज नही!

पर कहते है न ” सांड की लड़ाई में बाड़ी का विनाश “ दौलत का सहारा लेकर कायदे को ताक में रखकर अपने पसंदीदा जगह तो शिक्षकों ने हथिया लिया, पर विघ्न संतोषियों से नहीं रहा गया और इसकी शिकायत आला अधिकारी से कर दी।

अधिकारी ने भी पद्दोन्नति की सूची को निरस्त कर दिया। इस बीच कुछ लोगों ने पद्दोन्नति सूची के अनुसार ज्वाइनिंग भी कर ली। सूची को जायज ठहराने के लिए कुछ शिक्षकों ने हाईकोर्ट की शरण ले ली और कोर्ट ने भी इस पर स्टे लगा दिया। मजेदार बात यहीं से शुरू होती है जिन लोगो ने ज्वाइनिंग कर ली है वे तो हेड मास्टरी के मजे लूट रहे हैं। लेकिन, जो लोग ज्वाइनिंग नहीं ले पाए।
वे निरस्तीकरण की बंद गुफा के द्वार को फिर से खोलने के लिए बैक डेट में ज्वानिंग लेटर लेने के लिए दौलत का शिगुफा छोड़ रहे हैं।

जाहिर सी बात है ज्वाइनिंग लेटर पाने के लिए बाबू का मूल्य बढ़ गया है। कहा तो यह भी जा रहा है एक शिक्षका ने ढाई पेटी का नजराना बीईओ कार्यालय के बाबू को चढ़ाकर अपने हेड मास्टर होने का सपना को पूरा करने का संकल्प लिया है। लिहाजा जो शिक्षक ज्वाइनिंग नहीं कर पाए थे वे भी अब दौलत की शिगुफा का सहारा लेने के लिए बीईओ और डीईओ कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं।

 

स्पॉट वेरिफिकेशन बिना रजिस्ट्रेशन…ये है नए साहेब का नया चलन

जमीनों की हो रही हेराफेरी को रोकने स्थल निरीक्षण के बाद लैंड रजिस्ट्रेशन का नियम है। पर जिला मुख्यलय के बाबूसाहब बिना स्पॉट वेरिफिकेशन के रजिस्ट्रेशन कर सरकार के खजाने को खाली कर अपना खजाना भर रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि साहब ने कुछ दलालों को बिना स्थल निरीक्षण रजिस्ट्रेशन की रेट लिस्ट निर्धारित कर दिए हैं।

अब जमीन कैसी भी हो, विवादित हो या सरकारी रिकार्ड की हो तो ले देकर सब की रजिस्ट्री हो रही है। हां ये अलग बात है विवादित जमीन है तो नजराना बढ़ जाएगा और दस्तावेज सही तो सिग्नेचर का रेट कम लग जाएगा।

खबरीलाल की माने तो कई जमीनों की रजिस्ट्री तो ऐसे भी हुई है जिस पर आलीशान महल बना है, उस पर रजिस्ट्री शुल्क बचाने के लिए रिक्त भूखंड बताकर रजिस्ट्री की गई है। मतलब बाबू साहब अपने फायदे के लिए कायदे को ताक पर रखकर सरकार का करोड़ों राजस्व नुकसान भी कर रहे हैं।

अब अगर रजिस्ट्री की बात की जाए तो दादर, नकटीखार, खरमोरा सहित कई ऐसे गांव हैं जहां की रजिस्ट्री के लिए ऊपर का रेट अतिरिक्त लिया जाता है। यही हाल मसाहती गांवों में हैं। नम्बर सेट कर होने वाले रजिस्ट्री में नजराना एक पेटी तक वसूला जा रहा है और पेटी को रखने के लिए किराए का घर भी लिया जा रहा है।

कार में लाश और 35 टुकड़े

अपराध चाहे देश की राजधानी दिल्ली में हो या सूबे की न्यायधानी बिलासपुर में दोनों ही हालात में अपराधी की दिमागी हालत समाज को झकझोरने वाली है।
दिल्ली में अफताफ ने श्रद्धा वाकर की हत्या के बाद उनके 35 टुकड़े करके ठिकाने लगा ही दिया अगर वो पकड़ा नहीं जाता तो श्रद्धा के परिजनों को इस बात का पता ही नहीं चलता श्रद्धा अब इस दुनिया में रही। दरिंदे ने उसके 35 टुकड़े कर दिए।

बिलासपुर में प्रियंका की दर्दनाक मौत की कहानी भी इससे जुदा नहीं है। प्रियंका का गला घोंट कर उसकी लाश कार में छिपा दी गई थी। सबूत मिटाने के लिए परफ्यूम तक छिड़का गया, मगर हत्या का आरोपी आशीष कानून से बच नहीं पाया। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि आखिरकार ऐसे वारदात को अंजाम देने वाले अपराधियों पर कानून का भय कैसे कम होता जा रहा है।

कानून व्यवस्था को बनाए रखना पुलिस और सरकार की जिम्मेदारी है मगर अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने की जिम्मेदारी से पालकों को भी उठानी होगी नहीं तो श्रद्धा और प्रियंका जैसी कितनी ही बेटियां ऐसे ही दंरिदों के हाथों मारी जाती रहेगी।

आरक्षण पर राजनीति

छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण को लेकर कांग्रेस और भाजपा में जुबानी जंग तो हो रही है अब क्षेत्रीय दल भी आरक्षण की आग में राजनीतिक रोटी सेंकने में लगे हैं। कोरबा के पाली में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विधायक मोहित केरकेट्टा से मात खा चुकी गोंडवाना गणत़ंत्र पार्टी अब आदिवासी विधायक को ही निशाना बनना चाहती है।
जबकि आरक्षण जैसे मामले में सत्ता पक्ष के विधायक सम​र्थन यानि सरकार पर डबल दबाव बनाने जैसा ही है। पाली में जो कुछ भी हुआ उसे वोट की राजनीति की कहा जा सकता है।

हालांकि कांग्रेस के विधायक ने मंच से ही अपनी नीयत और इरादा साफ कर दिया कि वो भी आदिवासी समाज से आते हैं और समाज के साथ हैं। आरक्षण में हुए कटौती के विरोध में वो जनता के साथ। फिलहाल मोहित अपनी सादगी से वहां मौजूद आदिवासी समाज को फिर मोह लिया और राजनीति की रोटी सेंकने वालों की उम्मीदों पर पानी फिर गया।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा